पत्रकारिता के शुरुआती दिनों की बात है, मेरे अजीज इलाहाबादी दोस्त पांडे की आत्मविश्वास भरी हरकतें रातों की नींद उड़ा देती थीं। पांडे, वैसे तो बेहद समझदार और दूसरों का हितेषी था, लेकिन खुद को मुर्ख की तरह प्रदर्शित करना उसके हाव-भाव की एक अहम खासियत थी। उसकी हरकतें उन दिनों के स्ट्रेस को दूर करने का अहम साधन हुआ करती थी। आज भी है। पढ़ाई पूरी करने के बाद पांडू ने बतौर पहली नौकरी राजस्थान पत्रिका के साथ शुरू की और वहां एक साल काम करने के बाद ईटीवी की तरफ रुख किया। पांडे की ही जुबानी- ''एक बार पत्रिका में खबर बना रहा था, तो मेरा सामना अंग्रेजी शब्द क्लीवेज से हुआ, मैं डेस्क से उठा और जोर से बोला, अरे ये क्लीवेज क्या होता है? इतने में मेरे डेस्क के सामने बैठी सारी लड़कियां जोर से हंसने लगी, मैंने फिर कहा, खबर ट्रांसलेट कर रहा हूं और यहां क्लीवेज लिखा है, इसका हिंदी मतलब क्या लिखूं? इसके बाद में पत्रिका में प्रसिद्ध हो गया। मेरे साथ काम करने वाली लड़कियों से जब भी सामना होता, वो तेज-तेज हंसने लगती और पूछती पांडेजी हिंदी मतलब मिल गया था ना। कुछ दोस्त टाइप लड़कियां चुटकी लेते हुए ब
ललित फुलारा पत्रकार और लेखक हैं. माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय से जर्नलिज्म में एम.ए किया। दैनिक भास्कर , ज़ी न्यूज़ , राजस्थान पत्रिका, न्यूज़18 और अमर उजाला जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं. वर्तमान में ज़ी मीडिया में चीफ-सब एडिटर हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, संस्मरण और कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं। 2022 में कैंपस-यूथ आधारित नॉवेल 'घासी: लाल कैंपस का भगवाधारी' प्रकाशित हुआ। उपन्यास को साहित्य आज तक ने शीर्ष दस किताबों में शामिल किया.