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मई, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अपनों के बिना 'वीरान पहाड़'

पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में जीविकोपार्जन की जटिलता, संघर्ष और रोजगार के समुचित अवसर न होने ने पलायन को बढ़ावा दिया है। यहां जीवन सूर्योदय और सूर्यास्त नहीं, बल्कि रात को वो घना तिमिर है, जब प्रकृति की हरियाली भी सघन अंधेरे से ढक जाती है। ग्रामीण आबादी रोज़गार की तलाश और सुविधासंपन्न जीवन के लिए शहरों में जा रही है। खेत-खलिहान बंजर होते जा रहे हैं। गांवों के गांव खाली हो गए हैं। विकास के सही रोडमैप के अभाव, नीति-नियंताओं और हुक्मरानों की निष्क्रियता, दूरदृष्टि और सही विजन की कमी ने जिस परिकल्पना से इस पहाड़ी राज्य का गठन हुआ था, उस पर बट्टा लगा दिया है। राज्य में प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और लूट-खसोट का 'खुला खेल फर्रुखाबादी' नेताओं की नाक के नीचे फल-फूल रहा है। ग्रामीण क्षेत्र में परियोजनाओं के नाम पर सारा धन ग्राम प्रधान, वन पंचायत और पटवारी निगल रहे हैं। मिड-डे मील के नाम पर स्कूलों के लिए भेजा जाने वाला राशन अध्यापक और रसोइए के घरों में जा रहा है। एक करोड़ से ज़्यादा आबादी वाले उत्तराखंड में विकास की वाह्य कल्पना तो सफल है, लेकिन भीतर से खोखली है। पर्यटन स्थल और अति व

क्या जानवरों से भी हिंसक और क्रूर हो गया है इंसान?

देश की राजधानी दिल्ली में सरेआम सड़क पर पीट-पीटकर डीटीसी बस के ड्राइवर की हत्या की घटना ने साबित कर दिया है कि इंसान पशुओं से भी ज़्यादा क्रूर और निर्दयी हो गया है। इंसान ने दया, क्षमा और परोपकार की भावनाओं को बिसरा दिया है और हिंसक प्रवृत्ति उसकी आवृत्ति बन गई है। यह कोई पहली घटना नहीं है, जहां इंसान का जानवरों से भी हिंसक और निर्दयी स्वरूप उभरकर समाज के सामने आया हो। इससे पहले दिल्ली का तुर्कमान गेट रोड रेज का गवाह रहा है। अपने आस-पास के माहौल में भी आप पाएंगे कि धैर्य खोकर लड़ना-झगड़ना और एकदम से उग्र हो जाना इंसानी स्वभाव का अहम हिस्सा बनता जा रहा है। बेहद मामूली चीज़ों पर दूसरे की जान ले लेना मानों कोई जुर्म ही न हो? अखबारों और समाचार चैनलों पर 'मामूली विवाद पर हत्या' की लाइन आम हो गई है। सड़क पर किसी से मामूली-सी बहस में कौन, कब किसकी जान ले ले किसी को नहीं पता? डीटीसी की घटना में अपराधी तो अपने अपराध के लिए दोषी है ही साथ ही मैं मूकदर्शक जनता क्या कम अपराधी है? जनता और कंडक्टर के सामने हेलमेट और ऑक्सीजन सिलेंडर से अशोक को मारा जाता है और लोग तमाशबीन बने रहते हैं।