पुलिस अपनी छवि कब सुधारेगी? या पुलिस की छवि कब सुधरेगी? यह स्वाभाविक यक्ष प्रश्न जवान से लेकर बुढ़े हर उस इंसान के जेहन में ज़रूर कौंधता होगा जो अपने जीवन-काल में चौकी और थाने की चौखट देख आया हो या फिर किसी ना किसी रूप में खादी वर्दी से उसका वास्ता पड़ा हो। अमूमन ज्यादातर लोग गंभीर घटनाओं और आपराधिक वारदातों से पहले सिर्फ इसलिए वर्दी वालों के दहलीज पर कदम नहीं रखते, क्योंकि वहां आरोपी से ज्यादा सख्ती पीड़ित के साथ दिखाई जाती है। यह मात्र संयोग नहीं बल्कि व्यवस्थागत खामी का एक अहम पहलू है कि अपराधियों के खौफ के साथ-साथ पुलिस की उदासीनता का भय भी लोगों में सिहरन पैदा कर देता है। बात जब उत्तर प्रदेश को लेकर की जाए तो आपराधिक मामलों के साथ ही यहां पुलिस की असहिष्णुता, उदासीनता और खौफनाक चेहरे के कई किस्से आपके जेहन में ताजा हो उठेंगे। उत्तम प्रदेश बनाने का सपना संजोए युवा मुख्यमंत्री चाहे कानून-व्यवस्था की लाख दुहाई दे लें। पुलिस की तारीफ में कसीदें पढ़ लें, लेकिन उनके सरकारी मुलाजिम और जनता के रक्षक अपने व्यवहार और उदासीन छवि की वजह से जनता से कोसों दूर हो गए हैं। आम जनता की धारणा ब
ललित फुलारा पत्रकार और लेखक हैं. माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय से जर्नलिज्म में एम.ए किया। दैनिक भास्कर , ज़ी न्यूज़ , राजस्थान पत्रिका, न्यूज़18 और अमर उजाला जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं. वर्तमान में ज़ी मीडिया में चीफ-सब एडिटर हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, संस्मरण और कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं। 2022 में कैंपस-यूथ आधारित नॉवेल 'घासी: लाल कैंपस का भगवाधारी' प्रकाशित हुआ। उपन्यास को साहित्य आज तक ने शीर्ष दस किताबों में शामिल किया.