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अप्रैल 25, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ईमानदार समीक्षा- साहित्य का सच्चा पाठक और लेखक

एक जानकार काफी दिनों से अपनी किताब की समीक्षा लिखवाना चाहते थे। अक्सर सोशल मीडिया लेटर बॉक्स पर उनका संदेश आ टपकता। 'मैं उदार और भला आदमी हूं' यह जताने के लिए उनके संदेश पर हाथ जोड़ तीन-चार दिन बाद मेरी जवाबी चिट्ठी भी पहुंच जाती। यह सिलसिला काफी लंबे वक्त का है। इतना धैर्यवान व्यक्ति मैंने अभी तक नहीं देखा था। एक ही संदेश हर दूसरे दिन ईमोजी की संख्या बढ़ाकर मुझे मिलता और हर तीसरे-चौथे दिन विनम्रतापूर्ण नमस्कार वाली इमोजी की संख्या बढ़ाकर मेरा जवाब उन तक पहुंचता। बीच-बीच में कभी-कभार वो मैसेंजर से फोन भी कर लिया करते। जब कट जाता मैं वापस हाथ जोड़ देता। करीब दो-तीन महीने इसी तरह का संवाद चलते रहा और एक दिन उन्होंने नंबर मांगा। मैंने दे दिया। कुछ देर बाद फोन आया। बातचीत शुरू हुई। उनकी शिकायत थी कि मैंने अभी तक उनकी पुस्तक की न ही फोटो शेयर की और न ही उस पर कुछ लिखा। फिर उन्होंने पूछा- मैंने जो कुछ पन्ने भेजे थे उनको पढ़ा। मेरा जवाब था- 'वक्त नहीं मिला।' उनकी बातचीत में अधिकार भाव ज्यादा था इसलिए मेरी विनम्रता की सीमा बढ़ गई। करीब आधे घंटे तक बातचीत हुई। अच्छी तरह