एक जानकार काफी दिनों से अपनी किताब की समीक्षा लिखवाना चाहते थे। अक्सर सोशल मीडिया लेटर बॉक्स पर उनका संदेश आ टपकता। 'मैं उदार और भला आदमी हूं' यह जताने के लिए उनके संदेश पर हाथ जोड़ तीन-चार दिन बाद मेरी जवाबी चिट्ठी भी पहुंच जाती। यह सिलसिला काफी लंबे वक्त का है। इतना धैर्यवान व्यक्ति मैंने अभी तक नहीं देखा था। एक ही संदेश हर दूसरे दिन ईमोजी की संख्या बढ़ाकर मुझे मिलता और हर तीसरे-चौथे दिन विनम्रतापूर्ण नमस्कार वाली इमोजी की संख्या बढ़ाकर मेरा जवाब उन तक पहुंचता। बीच-बीच में कभी-कभार वो मैसेंजर से फोन भी कर लिया करते। जब कट जाता मैं वापस हाथ जोड़ देता। करीब दो-तीन महीने इसी तरह का संवाद चलते रहा और एक दिन उन्होंने नंबर मांगा। मैंने दे दिया। कुछ देर बाद फोन आया। बातचीत शुरू हुई। उनकी शिकायत थी कि मैंने अभी तक उनकी पुस्तक की न ही फोटो शेयर की और न ही उस पर कुछ लिखा। फिर उन्होंने पूछा- मैंने जो कुछ पन्ने भेजे थे उनको पढ़ा। मेरा जवाब था- 'वक्त नहीं मिला।' उनकी बातचीत में अधिकार भाव ज्यादा था इसलिए मेरी विनम्रता की सीमा बढ़ गई। करीब आधे घंटे तक बातचीत हुई। अच्छी तरह
ललित फुलारा पत्रकार और लेखक हैं. माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय से जर्नलिज्म में एम.ए किया। दैनिक भास्कर , ज़ी न्यूज़ , राजस्थान पत्रिका, न्यूज़18 और अमर उजाला जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं. वर्तमान में ज़ी मीडिया में चीफ-सब एडिटर हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, संस्मरण और कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं। 2022 में कैंपस-यूथ आधारित नॉवेल 'घासी: लाल कैंपस का भगवाधारी' प्रकाशित हुआ। उपन्यास को साहित्य आज तक ने शीर्ष दस किताबों में शामिल किया.