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अक्तूबर 1, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जहर और दूध

एमए दूसरे साल में आते ही दैनिक भास्कर में नौकरी लग गई। रूम में चार लोग रहते थे। एक दोस्त का फोन आया। मुझे लगा शायद बधाई देगा। फोन उठाते ही मैं ख़ुशी-ख़ुशी बोला 'हां भाई'। दूसरी तरफ से जो सुना माथे पर लकीरें खिंच गई। हमारा मुखिया बहुत गुस्से में था बोला 'घर में मिठाई के डब्बे के साथ ही जहर की शीशी भी लेकर आना'। 'दो लोग रात में मिठाई खाएंगे, मैं ज़हर पिऊंगा'। इतना कहते ही फोन कट। मैं इंटरव्यू देकर अभी ऑफिस के बाहर ही खड़ा था। तभी एक और फोन आया। अब मुझे लगा ज़हर की शीशी शायद दो ले जानी  होंगी। इस फ़ोन ने सांत्वना के दो शब्द कहे और सूचना दी कि मुखिया साहब 2 घंटे से नंगे बदन बैठे हैं और ज़हर पीने को उतावले हो रहे हैं।  55 सेक्टर से पहले ही खोड़ा उतरकर जलेबी पैक करवा ली। रूम में घुसते ही देखा मातम छाया है। मुखिया बीच में है, दो लोग घेरे बैठे हैं। जलेबी थाली में रख, सबसे पहले मुखिया की तरफ बढ़ाई। 'फुलारा साहब जहर कहाँ है' । 'पहले मीठा खा लो, फिर कड़वा पी लेना' मुखिया को प्रेम से जवाब दिया। 'भुमिहार का कमिटमेंट, सलमान खान से भी पक्का है। आज जहर पीकर ही रहूंग

मुखिया

पत्रकारिता में स्नातकोत्तर के दौरान मुखिया मेरा दोस्त बना। हमारी मित्रता की नींव कृष्ण-सुदामा के लौकिक-अलौकिक संबंधों की बजाय, नफा-नुकसान पर टिकी थी। उसे कमरे की दरकार थी, मुझे झटपट खाना बनाने वाले की। पहले दिन दाल-भात, चौखा खिलाया, दूसरे दिन मिठी-मिठी बातें की और तीसरे दिन 800 का तखत तोड़ डाला। मैं गुस्साता, इससे पहले ही फटा-फट तखत की अदला-बदली कर दी गई और सारा कसूर उस बढ़ई के सर डाल दिया, जो हमारे किराए के कमरे के बगल में काम कर रहा था और ‘स्टूडेंट हैं’ का रोना रोने के बाद दयाभाव से उसने हमारे लिए 1600 में दो तखत बनाए थे।  अभी भी मेरे कमरे में वही तखत है। सामने उसी पर इस वक्त छोटा भाई पैर में पैर डाल चैन की नींद ले रहा है। मुखिया से इंप्रेश होकर, कमरे के अगले हिस्सेदार के लिए मैंने उसका पुरजोर समर्थन किया, दद्दा और पंडित तो उसकी परछाई भी कमरे में नहीं पड़ने देना चाहते थे। इस तरह इलाहाबाद, पहाड़, ग्वालियर और बिहार एक कमरे में सिमट गया।  मुखिया हर बात पर खुलकर मेरा समर्थन करने लगा, अंदर से गदगद मुझे यही लगता सही बंदे से हाथ मिलाया है। कुछ दिन बीतते ही मुखिया ने