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जून 15, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

धुंधली यादों का सफर, बनते बिगड़ते रिश्तों की अनकही कहानी

बंकू को देखते ही मुझे मनोहर श्याम जोशी के उपन्यास नेता जी कहिन के पात्र की याद आ जाती है। दाल-भात और लिट्टी चौखा बनाकर इम्प्रेश जो किया था उसने मुझे। हालांकि, उसके प्रति मेरे मन में कोई पूर्वाग्रह और बैर नहीं है। वो जो सबके लिए है वैसा ही मेरे लिए भी है। किसी एक लिए बुरा होने जैसा गुण या फिर अवगुण मैंने वेंकटेश में कभी नहीं देखा। वो समय के हिसाब से राजनीतिक विद्या में माहिर है, ऐसा मेरा नहीं उसका खुद का मानना है। लेकिन, कुछ लोग कहते हैं उसकी चाल पहले ही समझ में आ जाती है।  ..................... हर सफर की शुरुआत उत्साह और जुनूनी ख्यालों से शुरू होती है। मन में कई तरह के सवाल, उधेड़बुन और जवाब खोजती प्रश्नवाचक आकृतियां बनती और बिगड़ती हैं। सपने बड़े होते हैं और इनके बीच की दूरियों को कम करने के लिए हम चल पड़ते हैं, एक अनजान रास्ते पर। गांव, देहात और कस्बों की घास-फूस की झोपड़ी और कच्चे मकानों की दुनिया से उड़ान भरते हुए हमारे ये सपने शहर की दहलीज पर पहला कदम रखती हैं। हम खुशी में झूमते हैं। पहली सीढ़ी पार करने की तसल्ली हमें रोमांचित कर देने वाली संतुष्टि का अनुभव कराती है। शहर