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..जो समझता है प्रेम करता है, जो कुछ नहीं समझता व्यर्थ है

अगर प्रेम, गुलाब की पंखुड़ियों में होता तो चंद घंटे बाद गुलाब मुरझा क्यों जाता? प्रेम तो गुलाब की टहनियों में है जो हवा के संग लहलहाती हैं। प्रेम की जड़ वो मिट्टी है जो पानी से सींची जाती है और चंद रोज बाद असंख्य गुलाब मुस्करा रहे होते हैं। प्रेम मनुष्य के भीतर है। वो न शब्द में है, न भाव में है। वो चेतना में है। अहसास में है। शब्द मात्र उसकी अभिव्यक्ति है। प्रेम व्यक्ति के भीतर एक सक्रिय शक्ति है। यह शक्ति, व्यक्ति और दुनिया के बीच की दीवारों को तोड़ डालती है और उसे दूसरों से जोड़ देती है। लेकिन, कहीं ऐसा तो नहीं अब यह सक्रिय शक्ति क्षीण होती जा रही है और प्रेम दिखावटी! हम एक जल्दबाजी। शोरगुल। भीड़-भाड़ और रफ्तार और हड़बड़ी में तो नहीं जी रहे। अगर जी रहे हैं तो कितना अजीब है यह जल्दबाजी है। शोरगुल। भीड़-भाड़... और रफ्तार। हमारे पास सबकुछ है सिर्फ वक्त नहीं है। न मिलने, न बातचीत के लिए। ऐसे में हमारे अंदर का प्रेम फीका पड़ रहा है...शून्य की तरफ बढ़ रहा है। किसी के दुख में हमारे आंखों में आंसू नहीं होते, सुख में चेहरे की मुस्कारहट...हमारी भावनाएं किस तरफ बढ़ रही हैं। टहनी विहीन गुल