दिल्ली विधानसभा चुनाव के हो-हल्ले के बीच 'कांग्रेस' मेरे लिए चिंता का विषय बनी हुई है। चिंता इस बात की है कि क्या कांग्रेस का अस्तित्व खत्म हो गया है? या फिर मीडिया ने कांग्रेस को बिसरा दिया है। कांग्रेसी नेता क्या पहले से ही अपने को दिल्ली फतेह के युद्ध से बाहर कर चुके हैं। इस चुनाव को लेकर कांग्रेस न तो गंभीर दिख रही है और ना ही मुखर। कांग्रेस की इस सुस्ती की वजह से दिल्ली चुनाव पूर्णत: आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच का बन गया है। यह चुनाव केजरी बनाम बेदी नहीं, मोदी ही है। ये तो बीजेपी भी जान ही गई है कि बेदी को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर पेश करने से उन्हें उनकी सोच के मुताबिक फायदा बिल्कुल नहीं मिला और ना ही मिलने वाला है, मोदी प्रचार ही असल सहारा है। दूसरी तरफ, आम आदमी पार्टी की मुश्किलें आने वाले दिनों में और बढ़ने वाली हैं। विज्ञापन वार में तो केजरीवाल ने सटीक दांव-पेंच खेलकर बीजेपी का पसीना छुटा दिया था। पार्टी दिल्ली में बनिया वोट खिसकने के भय से आशंकित हो उठी थी, लेकिन फर्जी कंपनी से चंदा लेने और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप ने 'आप' को चौतरफा घेर लिया है। इसक
ललित फुलारा पत्रकार और लेखक हैं. माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय से जर्नलिज्म में एम.ए किया। दैनिक भास्कर , ज़ी न्यूज़ , राजस्थान पत्रिका, न्यूज़18 और अमर उजाला जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं. वर्तमान में ज़ी मीडिया में चीफ-सब एडिटर हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, संस्मरण और कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं। 2022 में कैंपस-यूथ आधारित नॉवेल 'घासी: लाल कैंपस का भगवाधारी' प्रकाशित हुआ। उपन्यास को साहित्य आज तक ने शीर्ष दस किताबों में शामिल किया.