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आंखों में पलते-बिखरते सपने

नब्बू के गांव में इनदिनों काफी रौनक है। मल्ला बाखली से तल्ला बाखली तक के घरों में बच्चों, औरतों और आदमियों की भरमार है। धूणी में सुबह-शाम भजन-कीर्तन हो रहे हैं। ‘ हिटो भुला, हिटो बैंणी पहाड़ जौलों ’ गीत पर महिलाएं जमकर थिरक रही हैं। गांव का रंगीन मिजाज देखकर नब्बू की अलसाई आंखों में चमक आ गई है। नजरें शहरों से आए हमउम्र बच्चों के चौड़े स्कीन वाले स्मार्टफोन पर गड़ी हुई हैं।   नब्बू भी इन बच्चों की तरह बैंजी बनाना ’ और ‘ टैंपल रन ’ की दुनिया में खो जाना चाहता है। जैसे ही दिन बित रहे हैं   नब्बू के जेहन में एक अजनबी डर उभरने लगा है। पहाड़ फिर से वैसे ही मुर्दा शांति से भर जाएगा ! घरों की धैलियां विरान हो जाएंगी। भजन- कीर्तन से गूंजनी वाली धूणी के बाहर कुत्ते अर्ध तंद्रा में लेटे होंगे। घरों में फिर से बड़े-बड़े ताले लटक जाएंगे। इस तरह का ख्याल दिमाग में कौंधते ही नब्बू की आंखों की रौशनी फिकी पड़ गई। चेहरा मुरझा गया है। लंबी खामोशी के बाद एकदम से तेज आवाज जिस तरह कानों को चुभने लगती है और कई बार दिल में घबराहट पैदा कर देती है, वैसे ही असुरक्षा और डर की भावना ने उसके दिल की ध