सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

जून 19, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हिलमणी का रेडियो

वॉइस कमांड के इस युग में हिलमणी होते तो बेटे का लाया रेडियो कभी नहीं तोड़ते। 'चुप जा रे' कहते ही रेडियो बंद हो जाता है और हिलमणी का गुस्सा शांत। मोहरी पर रखा हुआ रेडियो बड़ी देर से बज रहा था और गोठ में हुक्का फूंक रहे हिलमणी के कान देसी गानों से फटे जा रहे थे। घर ही नहीं, गांव में यह पहला नया रेडियो आया था। रेडियो सुबह- शाम खोई में लौंडों के साथ ही सैणियों की भी भीड़ जुट जाने वाली हुई। सबको गीत सुनने ठहरे। कई दिनों तक पहाड़ी गीत और भजन चले फिर देसी गानों की धुन बजने लगी। एक दिन बेटा बाली रेडियो बजाकर ऊपर गांव की तरफ चल दिया। घंटा हो गया रेडियो ने चुप होने का नाम ही नहीं लिया तो गोठ से तमतमाते हुए हिलमणी हुक्का उठाकर बाहर आए और पांच-छह बार 'चुप जा रे' बोला। हर दिन तो एक घंटे बाद बंद हो ही जाता था आज नहीं हो रहा क्या बात? यह सोचते हुए वह रेडियो के बगल में बैठकर हुक्का गुड़गुड़ाने लगे। हिलमणी ने फिर बोला 'या तो चुप हो जा या फिर पहाड़ी गाने सुना।' रेडियो ने उनकी एक नहीं सुनी और देसी गाने बजते रहे। बुड्ढे ने रेडियो की दो-तीन बार पीठ भी थपथपाई 'अरे च