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काकड़ीघाट का वह वृक्ष जहां स्वामी विवेकानंद को हुई थी ज्ञान की प्राप्ति, ग्वेल ज्यू के घोड़े का किस्सा

(अल्मोड़ा-हल्द्वानी के रास्ते में पड़ने वाला काकड़ीघाट) यह काकड़ीघाट का वही पीपल वृक्ष है, जहां स्वामी विवेकानंद जी को 1890 में ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। असल वृक्ष 2014 में ही सूख गया था और उसकी जगह इसी स्थान पर दूसरा वृक्ष लगाया गया है, जिसे देखने के लिए मैं अपने एक साथी के साथ यहां पहुंचा था। काकड़ीघाट पहुंचते ही हमें चंदन सिंह जंतवाल मिले, जिन्होंने अपनी उम्र 74 साल बताई। वह ज्ञानवृक्ष से ठीक पहले पड़ने वाली चाय की दुकान के सामने खोली में बैठे हुए थे, जब हमने उनसे पूछा था कि विवेकानंद जी को जिस पेड़ के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, वह कहां है? सामने ही चबूतरा था, जहां लोग ताश और कैरम खेल रहे थे। विशालकाय पाकड़ वृक्ष को देखते ही मेरा साथी झुंझलाया 'यह तो पाकड़ है... पीपल कहां है?' जंतवाल जी मुस्कराये और आगे-आगे चलते हुए हमें इस वृक्ष तक ले गए। तब तक मैंने ज्ञानवृक्ष का बोर्ड नहीं पढ़ा था और उनसे ही पूछ बैठा। यह तो हाल ही लगा हुआ वृक्ष लग रहा है, पुराना वाला कहां है? असल में ज्ञानवृक्ष को देखने की ही चाहत हमें यहां तक खींच लाई थी। वृक्ष को लेकर दिमाग में पहले से ही विशाल पीपल