ललित फुलारा श निवार का दिन। अगस्त की पहली तारीख़। यूपी में लॉकडाउन। नोएडा की सड़कों पर आवाजाही सामान्य दिनों की तरह। जगह-जगह बैरिकेड। कहीं पुलिसवाले और कहीं सिर्फ पुलिस के आने का डर। दफ़्तर में खाली कुर्सियां और कैबन। पिछले बीस दिनों से वो ही चेहरे जिनके होने का पहले से ही अंदाजा रहता है। मुंह पर मास्क और भीतर से थोड़ी चिढ़ व झुंझलाहट। मज़बूरी कुछ ऐसी, जो अपने वक्त के इतिहास के पन्नों में दर्ज, तो हो जाती है पर पन्नों के किताब बनने में वक्त लगता है। कुछ दिन बीमार पड़ने के बाद, भीतर से फिर वही उत्साह है, जो सतत बने रहता है। शाम से पहले के हिस्से को आप अदृश्य समझ लीजिए। कुछ चीजें वक्त के साथ दृश्यमान हों तभी बेहतर रहता है। सात बजने को हैं और नोएडा एक्सटेंशन की तरफ बढ़ते हुए सड़कों के किनारे के ठेले कम ही दिख रहे हैं। ऑटो की संख्या में भी कमी है। गौड़ चौक से पहले पड़ने वाले नाले के किनारे जगह-जगह दिखने वाले आम के ठेले, टेक्टर व बैलगाड़ी में बिखरे आम नदारद हैं। ताज़ी सब्जियों की दुकानें भी गायब हैं। सामने नीचे की तरफ स्टेडियम के ऊपर फुटपाथ पर सब्जियों की कुछ दुकानें जरूर लगी हैं। जहां
ललित फुलारा पत्रकार और लेखक हैं. माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय से जर्नलिज्म में एम.ए किया। दैनिक भास्कर , ज़ी न्यूज़ , राजस्थान पत्रिका, न्यूज़18 और अमर उजाला जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं. वर्तमान में ज़ी मीडिया में चीफ-सब एडिटर हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, संस्मरण और कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं। 2022 में कैंपस-यूथ आधारित नॉवेल 'घासी: लाल कैंपस का भगवाधारी' प्रकाशित हुआ। उपन्यास को साहित्य आज तक ने शीर्ष दस किताबों में शामिल किया.