पुलिस वैन में सर्वेश कुमार मैं बचपन से ही पुलिस वालों से चार क़दम दूर भागता हूं. कारण उनका रवैया रहा है. बहुत कम पुलिसकर्मी होंगे जो आपसे सलीक़े से बात करेंगे. नहीं तो रौब दिखाना उनकी प्रवृत्ति में शामिल होता है. शायद ये एक तरीक़ा हो अपराधी को तोड़ने और अपराध का पता लगाने के लिए. लेकिन, जब ये ही रवैया पुलिस आम नागरिकों पर अपनाने लगती है, तो उसकी छवि धूमिल हो उठती है. उसके प्रति आम नागरिक के मन में डर पैदा हो जाता है. आम नागरिक पुलिस से कतराने लगते हैं जिसका ख़ामियाजा समाज को उठाना पड़ता है, क्योंकि बहुत-सी घटनाओं में नागरिक ‘पुलिस के चक्कर में कौन पड़े कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं.’ मैंने ऊपर जो लिखा है इसका मतलब ये कतई नहीं है कि सारे पुलिसकर्मी एक से होते हैं…लेकिन कुछ पुलिसकर्मियों की बदौलत उनको यह तमगा पहनना पड़ता है. \जब पुलिसकर्मी ने कहा- तुम क्यों पड़ी हुई लकड़ी ले रहे हो? आज यानी की शुक्रवार सुबह जब सर्वेश कुमार नाम के एक पुलिसकर्मी ने मुझसे कहा कि तुम क्यों पड़ी हुई लकड़ी ले रहे हो. तब से मेरा मन बेहद व्यथित है. मैं एक ही बात सोच रहा हूं कि जब लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहलाने वाले मी
ललित फुलारा पत्रकार और लेखक हैं. माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय से जर्नलिज्म में एम.ए किया। दैनिक भास्कर , ज़ी न्यूज़ , राजस्थान पत्रिका, न्यूज़18 और अमर उजाला जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं. वर्तमान में ज़ी मीडिया में चीफ-सब एडिटर हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, संस्मरण और कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं। 2022 में कैंपस-यूथ आधारित नॉवेल 'घासी: लाल कैंपस का भगवाधारी' प्रकाशित हुआ। उपन्यास को साहित्य आज तक ने शीर्ष दस किताबों में शामिल किया.