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किसी को तो पड़ी हुई लकड़ी लेनी पड़ेगी साहब! पुलिस सेवा के लिए है या अपशब्दों के लिए?

पुलिस वैन में सर्वेश कुमार
मैं बचपन से ही पुलिस वालों से चार क़दम दूर भागता हूं. कारण उनका रवैया रहा है. बहुत कम पुलिसकर्मी होंगे जो आपसे सलीक़े से बात करेंगे. नहीं तो रौब दिखाना उनकी प्रवृत्ति में शामिल होता है. शायद ये एक तरीक़ा हो अपराधी को तोड़ने और अपराध का पता लगाने के लिए. लेकिन, जब ये ही रवैया पुलिस आम नागरिकों पर अपनाने लगती है, तो उसकी छवि धूमिल हो उठती है. उसके प्रति आम नागरिक के मन में डर पैदा हो जाता है.


आम नागरिक पुलिस से कतराने लगते हैं जिसका ख़ामियाजा समाज को उठाना पड़ता है, क्योंकि बहुत-सी घटनाओं में नागरिक ‘पुलिस के चक्कर में कौन पड़े कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं.’ मैंने ऊपर जो लिखा है इसका मतलब ये कतई नहीं है कि सारे पुलिसकर्मी एक से होते हैं…लेकिन कुछ पुलिसकर्मियों की बदौलत उनको यह तमगा पहनना पड़ता है.

\जब पुलिसकर्मी ने कहा- तुम क्यों पड़ी हुई लकड़ी ले रहे हो?

आज यानी की शुक्रवार सुबह जब सर्वेश कुमार नाम के एक पुलिसकर्मी ने मुझसे कहा कि तुम क्यों पड़ी हुई लकड़ी ले रहे हो. तब से मेरा मन बेहद व्यथित है. मैं एक ही बात सोच रहा हूं कि जब लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहलाने वाले मीडिया के एक कर्मचारी जिसे पत्रकार कहते हैं, को पुलिसकर्मी किसी बात की शिकायत को लेकर ऐसा जवाब दे सकता है, तो आम नागरिकों को क्या कहा जाता होगा? गलती सर्वेश कुमार की नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की है जिसमें पुलिस को सामाजिक भाषा और व्यवहार के बारे में शिक्षित ही नहीं किया जाता.

पुलिस होने का अर्थ यह कतई नहीं है कि आप रौब दिखाएं.

पुलिस का अर्थ मित्रता, सौम्यता, संवेनशीलता, धैर्यता और सजगता होता है.

दरअसल, सर्वेश कुमार ने जिस बात पर मुझे ‘तुम्हें पड़ी हुई लकड़ी लेने की क्या जरूरत है’ कहा वह बेहद छोटी बात थी. मैं सुबह मॉर्निंग वॉक पर जा रहा था तो कुछ गाड़ियों ने रोड को ब्लॉक कर रखा. महंगी गाड़ियां रोड पर तिरछी लगी हुई थी और सामने दूसरी रोड पर पुलिस की गश्त वैन खड़ी थी. कई बच्चे उस रोड पर स्केटिंग कर रहे थे. मैंने गश्त वैन में जागे हुए सर्वेश कुमार.. क्योंकि दूसरा पुसिसकर्मी सोया हुआ था, जिसे मैंने डिस्टर्ब नहीं किया! …से इसकी शिकायत की और कहा इनसे बोलिए सड़क को ऐसे घेरने से बेहतर है गाड़ियों को किनारे लगा लिया जाए, क्योंकि इससे अन्य लोगों में गलत संदेश जाएगा. रोड का इस तरह से अतिक्रमण कानून सम्मत नहीं है.

शायद मेरे इस तरह शिकायत करने से सर्वेश कुमार नाराज हो उठे. उन्हें लगा कोई ऐसे आकर सीधे पुलिसकर्मी से यह बात कैसे कह सकता है. पुलिस से तो डरना चाहिए! उन्होंने सीधे मुझसे कहा कि जब किसी और को दिक्कत नहीं है, तो तुम्हें पड़ी हुई लकड़ी लेने की क्या जरूरत है? इस बात पर मैंने उनसे कहा- मैं पत्रकार हूं और यह मेरा कर्तव्य है कि अगर मुझे रोड पर कुछ गैरकानूनी लगता है, तो आपको बताऊं. आप कार्रवाई नहीं करेंगे तो मैं ट्वीट करूंगा. मेरी इस बात से वह भड़क उठे और गाड़ी से बाहर निकलकर उल्टा सीधा बोलने लगे. मेरे साथ मेरी माताजी भी थी. हम दोनों के बीच तड़का-भड़की हुई और मैंने उनको समझाने की कोशिश की कि शिकायत करना मेरा काम और उसका निवारण आपका काम है.

आप नहीं करेंगे तो उच्च अधिकारियों से कहा जाएगा. इस पर वो और ज्यादा नाराज हो उठे और कहने लगे- पत्रकार हो तो वीडियो बना लो..जिससे शिकायत करनी है कर लो जाकर..कमिश्नर ..थाने जहां. इतने में एक जानकार व्यक्ति बीच-बचाव में आए और मैं समझ गया कि सर्वेश कुमार नहीं मानने वाले और वहां से सीधे आ गया..बिना उनसे कुछ बोले. बाद में मैंने यह पूरा मामला ट्विटर पर लिखा और फेसबुक पोस्ट डाली.

विधायक तेजपाल नागर और एसएचओ ने दिया आश्वासन

मेरे इस मामले पर संज्ञान लेते हुए क्षेत्र के भारतीय जनता पार्टी से विधायक तेजपाल नागर जी का फोन आया और उन्होंने मुझसे पूरी जानकारी लेते हुए घटना की भर्त्सना की और संबंधित अधिकारियों से उचित कार्रवाई करने के लिए कहने की भी बात कही. उसके बाद एसएचओ अनिता चौधरी जी का भी फोन आया जिन्होंने पुलिसकर्मी के इस व्यवहार पर खेद जताया. अनिता जी बेहद संवेदनशील और मृदुभाषी हैं. उन्होंने धैर्य के साथ मेरी बात सुनी….

मेरा पुलिस से कोई बैर नहीं! निवेदन है कि ऐसे पुलिसकर्मियों को सामाजिक व्यवहार सीखाया जाए, ताकि भविष्य में कोई व्यक्ति पुलिस के पास किसी चीज की शिकायत लेकर जाने में कतराए नहीं. मैं फिर कहता हूं एक पुलिसकर्मी के असंवेदनशील होने से पूरा पुलिस महकमा असंवेदनशील नहीं हो जाता. सर्वेश जी ने अच्छे से बात की होती और अपशब्दों का प्रयोग नहीं किया होता, तो मेरी पोस्ट कुछ और होती!




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ललित फुलारा


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