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मुझे स्ट्रीट प्ले देखना है पसंद: पीयूष मिश्रा

कला प्रेमियों के उत्सव में कलाकार ना हो तो कला किसके लिए ? और कलाकार जब उत्सव में कला से दूरी बनाता दिखे या मंशा जाहिर करे तो ज़रूर उत्सव , कला प्रेमियों के लिए कम , कला से जुड़े मठाधीशों के व्यवसायिक हितों के लिए ज़्यादा दिखने लगता है। रंगमंच की पुरानी शामों में कुछ वामपंथी कलाकार दोस्तों के मुंह से सुनता था- ‘ कला , कला के लिए होनी चाहिए ?’ पता नहीं आज वो इस बात से कितना इत्तफाक रखते होंगे। इसके पीछे के दर्शन पर कितनी बहसें होती होंगी ? पर कला व्यवसाय से इतर कहां हैं ? जो है गुमनामी या कलाकार की संतुष्टि में है। अर्से बाद भारगंम के बहाने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के प्रांगण में कदम रखा तो पीयूष मिश्रा फक्कड़ अंदाज में मंडली जमाए बैठे मिले। मौका अच्छा था। कुछ सवाल- जवाब और लगे हाथ इंटरव्यू का ख्याल मन में कौंध आया। कैमरे की व्यवस्था संजय ने संभाली।   मैं पीयूष के बगल में जा बैठा। वो फक्कड़ लहजे में बोले- ‘ ये इंटरव्यू- इंटरव्यू नहीं देना। ’ पर मैं तब तक बगल में जा बैठा था। संजय और अजीत ने अपने मोर्चा संभाल लिया था। सवाल- नाटक को बढ़ावा देने के लिए क्या किया जा सकता है ? पी