कभी-कभार बचपन में लौट जाना कितना सुकून देता है। पुरानी स्मृतियों को छूकर वापस लौटना भीतर की रिक्तता को भर देता है। उदासी छूमंतर हो जाती है, और चेहरे पर ख़ुशी लौट आती है। बचपन के दोस्तों की दास्तां और गुज़रे ज़माने के वो पल सबसे अनोखे होते हैं, जो कहीं गहरी तहों में दबे रहते हैं और जब उकेरे आंखों के आगे घूमने लग जाते हैं। आप वापस वहां पहुंच जाते हैं, जहां बस ख्वाबों और पुरानी स्मृतियों के ज़रिए ही पहुंचा जाता है। इसलिए ही कहते हैं, बीता पल वापस नहीं लौटता...बीतें पलों के रूप में वापस लौटती हैं यादें और स्मृतियां.. जो शरीर के ख़ाक होने के साथ ही विस्मृत होती हैं। अभी अचानक स्कूल के दोस्तों की यादें ज़ेहन में उभर आई। एक-एक कर सबसे चेहरे आंखों के आगे घूमने लगे। फटाफट फोन निकाला और मिला डाला। दूसरी तरफ, देवव्रत था। फिर दीपक भट्ट जुड़ा और थोड़ी देर के लिए उमेश चौहान भी आया पर उसकी व्यस्तता और वातावरण के शोर, कोलाहल और मशीनी हो हल्ले ने कॉन्फ्रेंस कॉल से दूर कर दिया। क़रीब एक घंटे तक बातचीत का सिलसिला चलते रहा। जब बचपन के दोस्तों के साथ बातें होती हैं, तो बस होती ही चली जाती हैं। संवाद अगर ल
ललित फुलारा पत्रकार और लेखक हैं. माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय से जर्नलिज्म में एम.ए किया। दैनिक भास्कर , ज़ी न्यूज़ , राजस्थान पत्रिका, न्यूज़18 और अमर उजाला जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं. वर्तमान में ज़ी मीडिया में चीफ-सब एडिटर हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, संस्मरण और कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं। 2022 में कैंपस-यूथ आधारित नॉवेल 'घासी: लाल कैंपस का भगवाधारी' प्रकाशित हुआ। उपन्यास को साहित्य आज तक ने शीर्ष दस किताबों में शामिल किया.