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पहाड़ की पहरू ईजा

फोटो साभार- युवा चित्रकार भास्कर भौर्याल ललित फुलारा असल मायने में पहाड़ की पहरू ईजा ही ठहरी। सदियों से ईजाओं ने ही पर्वतीय जनजीवन को संवारा व बचाया ठहरा। उनकी बदौलत ही शिखरों से घिरे हमारे गौं, पुरखों की स्मृतियों की याद लिए खंडहरों के बीच भी खड़े ठहरे। हमारी ईजाएं न होती, तो ये पहाड़ टूट जाते! सूनेपन, उदासी व उजाड़ के दु:ख से धराशायी हो जाते! दरक जाती घाटियां और महाप्रलय से पहले ही दूर पर्वतों की तहलटी पर बसे गौं; धरती की कोख में समा जाते। न यादें होती और न ही स्मृतियां! न गीत व कविताएं लिखी जातीं और न ही कहानियां बुनी जातीं। शुक्रिया कहो ...  अपनी ईजाओं को जिनकी बदौलत पहाड़ बसे रहे, बने रहे व बचे रहे।   बियावान में अग्नि धधकने के दु:ख के बाद भी पेड़-पौधे खुशी-खुशी लहलहाते रहे। लोक और संस्कृति बची रही। रीति-रिवाज और बोली का गुमान रहा। लोकगाथाओं की आस्था में सिर झुके और जागर की रौनक छाई। पहाड़ों का खालीपन भी ईजाओं के पदचाप, कमर की दाथुली, हाथ का कुटऊ, सिर की डलिया और आंचल के स्नेह से भरा रहा। हिमांतर पत्रिका में प्रकाशित जब हमारे बुबुओं की पीढ़ी ने पोथी लेकर धैली से बाहर कदम रखा और चौ

आंखन देखी: शनिवार, नारियल पानी और लॉकडाउन

ललित फुलारा श निवार का दिन। अगस्त की पहली तारीख़। यूपी में लॉकडाउन। नोएडा की सड़कों पर आवाजाही सामान्य दिनों की तरह। जगह-जगह बैरिकेड। कहीं पुलिसवाले और कहीं सिर्फ पुलिस के आने का डर। दफ़्तर में खाली कुर्सियां और कैबन। पिछले बीस दिनों से वो ही चेहरे जिनके होने का पहले से ही अंदाजा रहता है।  मुंह पर मास्क और भीतर से थोड़ी चिढ़ व झुंझलाहट।  मज़बूरी कुछ ऐसी, जो अपने वक्त के इतिहास के पन्नों में दर्ज, तो हो जाती है पर पन्नों के किताब बनने में वक्त लगता है। कुछ दिन बीमार पड़ने के बाद, भीतर से फिर वही उत्साह है, जो सतत बने रहता है।  शाम से पहले के हिस्से को आप अदृश्य समझ लीजिए। कुछ चीजें वक्त के साथ दृश्यमान हों तभी बेहतर रहता है। सात बजने को हैं और नोएडा एक्सटेंशन की तरफ बढ़ते हुए सड़कों के किनारे के ठेले कम ही दिख रहे हैं। ऑटो की संख्या में भी कमी है। गौड़ चौक से पहले पड़ने वाले नाले के किनारे जगह-जगह दिखने वाले आम के ठेले, टेक्टर व  बैलगाड़ी में बिखरे आम नदारद हैं। ताज़ी सब्जियों की दुकानें भी गायब हैं। सामने नीचे की तरफ स्टेडियम के ऊपर फुटपाथ पर सब्जियों की कुछ दुकानें जरूर लगी हैं। जहां