‘अधूरे होने की भी एक कहानी होती है और उस कहानी को मैं सुनना चाहती हूं।‘ दो साल के अंतराल के बाद जब कोई अचानक उन स्मृतियों को सुनाने के लिए कहे, जो आपके साथ-साथ चल रही होती हैं तो एक बार ये सोचने के लिए, की कहां से शुरू किया जाय, आंखों का बंद होना जरूरी है। आंखों के बंद होते ही कई चित्र बनते और बिगड़ते हैं, यादें घुमड़ती हैं और जब हम शुरु होते हैं तो कहां तक निष्पक्ष होते हैं पता नहीं। मैं अबतक दृश्यों के साथ प्रैक्टिस कर चुका हूं। गालों को तीन-चार बार मसलने। उंगलियों को पुतलियों पर कई दफा फेरने के बाद एक बार उसकी तरफ देखकर- मैं राब्ता करता हूं उससे उन तमाम यादों को लेकर जिन्हें भूलाने का ख्याल दो साल से मैं अपने जेहन में पाले हुए हूं। शाम की ढलती सबा उसकी जुल्फों को मेरे गालों तक ला रही हैं। उसकी खिलखिलाती हंसी, अचानक उभरे उदासी के गंभीर भाव और बच्चों-सी जिद्द मेरे मन के कोने में चुप्पी साध चुकी तन्हाई को गुम-सी कर देती है। सच होते हुए भी एक ख्वाब झूठा-सा भम्र लग रहा है। क्योंकि उसे पहली दफा देखते ही कुछ था जो मेरी नजरों में बस गया था और इस वक्त वो मेरे साथ बैठी थी- इस बात से अंज
ललित फुलारा पत्रकार और लेखक हैं. माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय से जर्नलिज्म में एम.ए किया। दैनिक भास्कर , ज़ी न्यूज़ , राजस्थान पत्रिका, न्यूज़18 और अमर उजाला जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं. वर्तमान में ज़ी मीडिया में चीफ-सब एडिटर हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, संस्मरण और कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं। 2022 में कैंपस-यूथ आधारित नॉवेल 'घासी: लाल कैंपस का भगवाधारी' प्रकाशित हुआ। उपन्यास को साहित्य आज तक ने शीर्ष दस किताबों में शामिल किया.