सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

अप्रैल, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ढलती शाम की सबा और तुम

‘अधूरे होने की भी एक कहानी होती है और उस कहानी को मैं सुनना चाहती हूं।‘ दो साल के अंतराल के बाद जब कोई अचानक उन स्मृतियों को सुनाने के लिए कहे, जो आपके साथ-साथ चल रही होती हैं तो एक बार ये सोचने के लिए, की कहां से शुरू किया जाय, आंखों का बंद होना जरूरी है। आंखों के बंद होते ही कई चित्र बनते और बिगड़ते हैं, यादें घुमड़ती हैं और जब हम शुरु होते हैं तो कहां तक निष्पक्ष होते हैं पता नहीं। मैं अबतक दृश्यों के साथ प्रैक्टिस कर चुका हूं। गालों को तीन-चार बार मसलने। उंगलियों को पुतलियों पर कई दफा फेरने के बाद एक बार उसकी तरफ देखकर- मैं राब्ता करता हूं उससे उन तमाम यादों को लेकर जिन्हें भूलाने का ख्याल दो साल से मैं अपने जेहन में पाले हुए हूं। शाम की ढलती सबा उसकी जुल्फों को मेरे गालों तक ला रही हैं। उसकी खिलखिलाती हंसी, अचानक उभरे उदासी के गंभीर भाव और बच्चों-सी जिद्द मेरे मन के कोने में चुप्पी साध चुकी तन्हाई को गुम-सी कर देती है। सच होते हुए भी एक ख्वाब झूठा-सा भम्र लग रहा है। क्योंकि उसे पहली दफा देखते ही कुछ था जो मेरी नजरों में बस गया था और इस वक्त वो मेरे साथ बैठी थी- इस बात से अंज