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जनवरी 12, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

‘धर्म’ का उद्देश्य मानवता का सुख

स्वामी विवेकानंद के व्यक्तित्व, महानता और दर्शन को एक लेख में बांधना संभव नहीं है. फिर भी स्वामी जी के उपदेशों में से ‘ धर्म ’ पर उनकी व्याख्या को उद्धरित किया जा रहा है. स्वामी जी को पढ़ने के दौरान इसी ने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया.     वैसे तो स्वामी जी की सभी शिक्षाएं व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास के लिए महत्वपूर्ण है. लेकिन उनकी ‘ धर्म ’ की व्याख्या हमें सही मायने में इंसानियत और इंसान का पाठ समझाती हैं. स्वामी जी मनुष्य को सुखी बनाने वाले धर्म को ही वास्तविक धर्म की संज्ञा देते थे. वो अपने शिष्यों से कहते थे कि जो धर्म मनुष्य को सुखी नहीं बनाता, वो वास्तविक धर्म है ही नहीं. उसे मन्दाग्निप्रसूत रोग विशेष समझो ’. स्वामी जी कहते थे, धर्म वाद-विवाद में नहीं है, वो तो प्रत्यक्ष अनुभव का विषय है. जिस प्रकार गुड़ का स्वाद खाने में है, उसी तरह ‘ धर्म ’ को अनुभव करो, बिना अनुभव किए कुछ भी न समझोगे. स्वामी जी अपने शिष्यों से अक्सर कहा करते थे- “ धर्म का मूल उद्देश्य है मनुष्य को सुखी करना. किंतु परजन्म में सुखी होने के लिए इस जन्म में दु : ख भोग करना कोई बुद्धिमानी का काम नहीं ह