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जनवरी 29, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
अंधविश्वास की सामाजिक जकड़न हमारा विश्वास ही अंधविश्वास में तब्दील होता है। बचपन में कई तरह का विश्वास मसलन, आम के पेड़ के नीचे मत जाना, वहां भूत रहता है। दोपहर में अकेले उस रास्ते पर चलने से छल लगता है। घर से बाहर निकलते वक्त छींकना , बिल्ली का रास्ता काटना और रोना अशुभ होता है। और न जाने क्या-क्या लंबी फेहरिस्त है ! अरे हां, एक और शामिल है इस लिस्ट में- आंख का फड़कना। लेकिन, धीरे-धीरे जब हम चीज़ों के ऊपर सोचने की प्रक्रिया से गुजरने लगे तो लगा, अरे यह तो निरी मुर्खता है। कोई छींक दे तो क्या हम अपना महत्वपूर्ण काम टाल देंगे ? बिल्ली रास्ता काट देगी तो क्या हम पेपर देने नहीं जाएंगे ? बहुत बार दिल नहीं माना, लेकिन काम इतना महत्वपूर्ण था कि उसे जबर्दस्ती मनाया। जैसे मंगलवार को शराब न पीने वाले, अगर पी लें तो, पहली भूल हनुमान जी भी माफ करते हैं, कहकर मन को मना लेते हैं। बचपन में सुनी और विश्वास की गई ऐसी ही कितनी चीज़े कई सालों तक अंधविश्वास बनकर साथ चलती रही। फिर सोचा, भई बिल्ली को भी रास्ते पर चलने का अधिकार है । छींक का आना स्वभाविक है, सर्दी लगने पर, नाक में धुल-मिट्टी जाने प