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अप्रैल 23, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

महाराष्ट्र के पालघर में दो संतों की नृशंस हत्या और उदारवादी बुद्धिजीवियों का सांप्रदायिक चेहरा

पा लघर की घटना 16 अप्रैल को घटी। करीब हफ्ते भर तक सूबे की सरकार चुप्पी साधे रही। मीडिया संस्थानों के ख़बरनवीसों को कोनो-कान खबर तक नहीं लगी। या फिर वीडियो सामने आने के बाद भी घटना के बड़े बन जाने तक इंतजार होता रहा। सोशल मीडिया पर दबाव बना और घटना का वीडियो तेजी से वायरल होने लगा। सामाजिक माध्यम के ख़बरनवीसों के बीच आक्रोश पनपा और विमर्श होने लगा कि साधुओं की नृशंस हत्या पर सरकार और मीडिया चुप्प क्यों है? महाराष्ट्र सरकार पर सोशल मीडिया एक्टिविस्टों का दबाव बना और अब तक देश के बड़े मीडिया संस्थानों ने भी ख़बर लपल ली। विपक्ष भी आक्रोशित हो गया और सूबे की सरकार पर निशाना साधा जाने लगा। आनन फानन में सूबे के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का बयान आया- 'न्याय किया जाएगा। अब तक लेफ्ट और राइट एंगल से मीडिया में इस घटना की कवरेज हो चुकी थी। बुद्धिजीवियों के ज़ुबान पर चढ़े रहने वाले कुछ अख़बारों और मीडिया संस्थानों ने 'दो लोगों की हत्या' के शीर्षक से खबर चलाई। जबकि दूसरी तरफ बहुत-से अखबारों और टेलीविजन चैनलों एवं वेबसाइटों पर 'दो साधुओं' की हत्या शीर्षक से खबर चलाई गई। उदारवादी