हर साल जाता है और स्मृतियों से जुड़ जाता है। ये स्मृतियां अच्छी और बुरी दोनों होती हैं। 2020 के साथ भी ऐसा ही रहा। अच्छी कम और बुरी स्मृतियां ज्यादा रहीं। दु:ख/तक़लीफ़/मानसिक परेशानी/चिंता/व्यथा/कष्ट/विपत्ति/संकट/अवसाद/उदासी और घोर निराशा में बीता। शब्दकोश में जितने भी नकारात्मक एवं मनुष्य के दर्द को बताने वाले शब्द हैं, सारे ही इस साल के साथ जुड़े रहे। यह एक साल आने वाले सौ साल के बराबर दु:ख और तक़लीफ़ देकर गया। साथ ही मनुष्यता को यह सीखाकर भी गया कि प्रारंभिक काल से लेकर आधुनिक काल तक इंसान के लिए निज हित ही सर्वोपरी रहा और स्वहित की जगह अब तक हम अपने भीतर परहित का भाव पूर्ण रूप से नहीं भर पाये। जिसने भरा उसने खाते-पीते, चलते और देखते ही इहलोक में ही मोक्ष की प्राप्ति कर ली। उसके भीतर अब कुछ नहीं भरा है। वह खाली है। यह सवाल भी छोड़ गया कि हमने अपनों को कितना पूछा? हम अपनों के साथ कितने खड़े रहे। अपना है क्या? क्या ख़ुद के सिवाय इस दुनिया में कुछ अपना है!! इस साल के साथ डर, बदकिस्मती और भय इस क़दर जुड़ा हुआ है कि सुबह यह सब लिखते वक्त भी में कई तरह के संशय से घिरा हुआ हूं। शरीर में
ललित फुलारा पत्रकार और लेखक हैं. माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय से जर्नलिज्म में एम.ए किया। दैनिक भास्कर , ज़ी न्यूज़ , राजस्थान पत्रिका, न्यूज़18 और अमर उजाला जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं. वर्तमान में ज़ी मीडिया में चीफ-सब एडिटर हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, संस्मरण और कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं। 2022 में कैंपस-यूथ आधारित नॉवेल 'घासी: लाल कैंपस का भगवाधारी' प्रकाशित हुआ। उपन्यास को साहित्य आज तक ने शीर्ष दस किताबों में शामिल किया.