हर साल जाता है और स्मृतियों से जुड़ जाता है। ये स्मृतियां अच्छी और बुरी दोनों होती हैं। 2020 के साथ भी ऐसा ही रहा। अच्छी कम और बुरी स्मृतियां ज्यादा रहीं। दु:ख/तक़लीफ़/मानसिक परेशानी/चिंता/व्यथा/कष्ट/विपत्ति/संकट/अवसाद/उदासी और घोर निराशा में बीता। शब्दकोश में जितने भी नकारात्मक एवं मनुष्य के दर्द को बताने वाले शब्द हैं, सारे ही इस साल के साथ जुड़े रहे। यह एक साल आने वाले सौ साल के बराबर दु:ख और तक़लीफ़ देकर गया। साथ ही मनुष्यता को यह सीखाकर भी गया कि प्रारंभिक काल से लेकर आधुनिक काल तक इंसान के लिए निज हित ही सर्वोपरी रहा और स्वहित की जगह अब तक हम अपने भीतर परहित का भाव पूर्ण रूप से नहीं भर पाये। जिसने भरा उसने खाते-पीते, चलते और देखते ही इहलोक में ही मोक्ष की प्राप्ति कर ली। उसके भीतर अब कुछ नहीं भरा है। वह खाली है। यह सवाल भी छोड़ गया कि हमने अपनों को कितना पूछा? हम अपनों के साथ कितने खड़े रहे।
अपना है क्या? क्या ख़ुद के सिवाय इस दुनिया में कुछ अपना है!!
इस साल के साथ डर, बदकिस्मती और भय इस क़दर जुड़ा हुआ है कि सुबह यह सब लिखते वक्त भी में कई तरह के संशय से घिरा हुआ हूं। शरीर में दर्द हो रहा है और ज़ुखाम लगा हुआ है। भीतर शंका और संशय भी कि जाते-जाते यह साल और क्या दे जाए और ले जाए। नौकरी से लेकर परिवार, ईष्ट-मित्र, चिरपरिचित हर जगह तो हथोड़े की चोट मारकर गया है। इस साल ने रिश्तों और संबंधों का ऐसा ताना बुना कि देखने का नजरिया ही बदल दिया। सामाजिकता कैसी बदली इसे किसी को बताने की जरूरत नहीं रही। इस साल और एक महामारी ने कई सौ सालों की परंपरा बदल दी; दु:ख और जरूरत में अपनों के मुंह पर पहुंचने की परंपरा।
इस सबके बीच भी...यह साल एक जज़्बा दे गया। चट्टान की तरह खड़े रहने का जज़्बा। हिम्मत। लड़ने की; भीड़ने की; और जीतने की। एक भाव- कुछ करने का। तक़लीफ़ों के पार ख़ुशियों को लाने का हौंसला। किसी ने महामारी को हराया तो कोई डटा रहा, परहित के भाव के साथ। किसी ने जान गंवाई परसेवा के लिए, तो कोई दिन-रात एक करके लगा रहा, धैर्य को ओढ़कर दूसरों की सेवा में। डॉक्टर से लेकर नर्स, पुलिसकर्मी से लेकर आपातकालीन सेवाओं में जुटे लोग। पत्रकार। लेखक। समाजसेवी। और आम नागरिक तक जिसके भीतर जो भाव रहा, वह उसी तरह सेवारत। सरकार, प्रशासन और विपक्ष सब परहित और स्वहित के साथ।
इस साल कल्पनाएं और रचनात्मकता भी परवान चढ़ी। रात को सोते वक्त सुबह उठते ही 2020 को गायब कर देने की कल्पना। अपनी-अपनी डायरी से 2020 को ग़ुम कर देने की कल्पना। 2020 की सारी यादों और विपत्तियों को मिटा देने की कल्पना। 2020 की मैमोरी को ईरेज कर देनी कल्पना। जो भी हो यह साल अगले साल के इंतजार में भीतर से उठने वाले उत्साह व इंतजार को सबसे ज्यादा दोगुना कर गया। इससे पहले तक किसी ने भी इस तरह से एक साल के गुजरने और दूसरे साल के आने का इंतजार नहीं किया होगा। अब वह इंतजार ख़त्म हुआ..इस उम्मीद और आशा के साथ कि 2021 सकारात्मक बना रहे। बदलाव... उत्साह और आनंद वाला।
सभी को नव वर्ष की शुभकामनाएं। घड़ी की सुईयां जल्द-जल्द घूमें और 2021 का सवेरा कुछ अलग हो।
ललित फुलारा
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