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फ़रवरी, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मनोज कुमार झा की ग़जलें

मनोज कुमार झा की ग़जलें पांव देखे पांवों के निशां देखे कैसे-कैसे हमने भी जहां देखे। - मनोज कुमार झा सांझ घिर आई तो तेरा संवरना देखा रात की बांहों में ये किसका मचलना देखा। देखने की हसरत जो रह गई हसरत ही जागते हुए शायद ये मैंने कोई सपना देखा। - मनोज कुमार झा मन है मौसम पतझड़ की तरह कहीं धूल में गुबार के भटकना है। - मनोज कुमार झा यूं ही भटकने में बीती है ये तमाम रात यहां-वहां कभी, कभी क्या तेरे पास। - मनोज कुमार झा जिन्हें हम याद करते हैं कभी वो याद क्या करते ये फ़ितरत है तुम्हारी जो फ़िर भी जां हम देते हैं। - मनोज कुमार झा ये कैसा दर्द का समंदर था आग़ जलती धुआं-धुआं-सी थी। घेर कर हर तरफ़ से क्या कहा कहानी ये कितनी बेबयां-सी थी। - मनोज कुमार झा मौन ही चित्रलिखित है रात की स्याही में तुम करो बात ना बात वो बेमानी है। - मनोज कुमार झा नज़रें मिलीं तो फ़िर बेक़रार क्यों हुईं क्या खेल ऐसा हुआ दो-चार जो हुईं। - मनोज कुमार झा जैसे नदी जलती हुई फ़िर समा गई पहाड़ों में अब समंदर सोखने की उनकी हसरत लाजवाब। - मनोज कुमार झा उनसे मिलना जो हुआ होता दिल ये आईना ज

-दूब

मनोज कुमार झा की कविताएं..  1-दूब हम उगेंगे और एक हरे विस्तार में बदल जाएंगे हम उगेंगे कई-कई गीली और भिगो देने वाली रातों के बाद हमारा उगना चिड़िया के गीतों और बच्चों की किलकारियों में गूंजेगा हम धरती के ओर-छोर तक लगातार उगते रहेंगे। - मनोज कुमार झा (रचना वर्ष - 1989) 2- सांझ एक नदी है सांझ एक नदी है थिर जल में परछाइयां हैं अनुभवों का रूपाकार उद्घटित होता है कई रंगों के मेल से बने बिंब प्रतिबिंबित होते हैं तुम्हारा प्रेम घुल गया है निर्विकार वहां बहुतेरे सन्नाटे सिसकियों की अनुगूंजें विस्मृतियों से निकल चोटिल करती लहराती हैं डूबता हूं इस सांझ में तो तैरता शव नग्न स्त्री का... इस सांझ को यहां देखो इस किनारे पेड़ पर लटक रही है लाश नग्न बालिका की बलत्कृत नदी किनारे फूंक दी जाती है होता है ब्रह्मभोज बलत्कृत आत्मा की मुक्ति के लिए इस नदी के पार पहाड़-सी रात है। मनोज कुमार झा की प्रवृत्ति छपास की नहीं है...बहुत निवेदन करने के बाद उनकी कुछ कविताओं को हासिल कर पाया हूं। दैनिकभास्करडॉटकॉम, भोपाल में कॉपी एडिटर के पद पर क

'आप' की मुश्किल बना आवाम

दिल्ली विधानसभा चुनाव के हो-हल्ले के बीच 'कांग्रेस' मेरे लिए चिंता का विषय बनी हुई है। चिंता इस बात की है कि क्या कांग्रेस का अस्तित्व खत्म हो गया है? या फिर मीडिया ने कांग्रेस को बिसरा दिया है। कांग्रेसी नेता क्या पहले से ही अपने को दिल्ली फतेह के युद्ध से बाहर कर चुके हैं। इस चुनाव को लेकर कांग्रेस न तो गंभीर दिख रही है और ना ही मुखर। कांग्रेस की इस सुस्ती की वजह से दिल्ली चुनाव पूर्णत: आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच का बन गया है। यह चुनाव केजरी बनाम बेदी नहीं, मोदी ही है। ये तो बीजेपी भी जान ही गई है कि बेदी को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर पेश करने से उन्हें उनकी सोच के मुताबिक फायदा बिल्कुल नहीं मिला और ना ही मिलने वाला है, मोदी प्रचार ही असल सहारा है। दूसरी तरफ, आम आदमी पार्टी की मुश्किलें आने वाले दिनों में और बढ़ने वाली हैं। विज्ञापन वार में तो केजरीवाल ने सटीक दांव-पेंच खेलकर बीजेपी का पसीना छुटा दिया था। पार्टी दिल्ली में बनिया वोट खिसकने के भय से आशंकित हो उठी थी, लेकिन फर्जी कंपनी से चंदा लेने और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप ने 'आप' को चौतरफा घेर लिया है। इसक