यह संवाद वामपंथी दादा और उनके नवेले शिष्य के बीच उस वक्त हो रहा है जब दादा मार्क्स को दो सौ साल और एक महीने होने को हैं। प्रेत को न मानने वाले दादा की प्रेत पूजा जारी है। एक ऐसा भी विचारों का वर्ग है जो दादा मार्क्स और उनके चेलों की मूर्तियों को गंगा में विसर्जन करने पर तुला है। इस वर्ग के विचारों से आने वाले कुछ नेता टाइप नौजवानों का मानना है- भटकती हुई आत्माएं बेहद खतरनाक होती हैं। गंगा नहला दिया जाए तो इनका प्रकोप शांत हो जाता है। दूसरी तरफ, स्वर्ग और नरक के बंधन से मुक्त, सृष्टि में मनुष्य से श्रेष्ठ किसी को न मानने वाले बंधु , अपनी बड़ी दाढ़ी, टीशर्ट और कालजयी टोपी में दादा मार्क्स, चाचा लेनिन और उनके विचार- वंशज च्वे ग्वेरा और गुरुभाई माओत्से तुंग को ध्यान-जात किए हुए हैं। उस वक्त विचारों की द्वंदात्मकता में उलझा एक शिष्य अपने वामपंथी दादा से ज्ञान प्राप्त कर फिल्म सिटी के पत्रकारों की तरह तृप्त होना चाह रहा है....आगे का संवाद निजी और नितांत तो नहीं है, लेकिन दोनों की धूनी रमी हुई है। पर्दा उठ रहा है गुरु और शिष्य की उम्र और दिखावट, बनावट का अंदाजा पाठक अपने आस-पास की स्थ
ललित फुलारा पत्रकार और लेखक हैं. माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय से जर्नलिज्म में एम.ए किया। दैनिक भास्कर , ज़ी न्यूज़ , राजस्थान पत्रिका, न्यूज़18 और अमर उजाला जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं. वर्तमान में ज़ी मीडिया में चीफ-सब एडिटर हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, संस्मरण और कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं। 2022 में कैंपस-यूथ आधारित नॉवेल 'घासी: लाल कैंपस का भगवाधारी' प्रकाशित हुआ। उपन्यास को साहित्य आज तक ने शीर्ष दस किताबों में शामिल किया.