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जुलाई 28, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

साहित्य और सोसायटी: उनकी आंखों में कई किताबें हैं जिनसे अनगिनत कहानियां झांकती हैं!

समान प्रवृत्तियां इंसान को चुंबक-सी खींच लेती है। जुड़ाव-सा हो जाता है। जब पहली बार मैंने मुकेश को देखा, तो एकाएक ठहर-सा गया। उसके टेबल पर मधु कांकरिया का उपन्यास 'सेज पर संस्कृत' था और मुझे देखते ही वो कुर्सी से खड़े होकर 'नमस्ते सर' बोला था। हर गगनचुंबी आधुनिक सोसायटी की तरह मेरी सोसायटी का रिवाज भी है कि यहां हर टावर के नीचे पहरा दे रहे सिक्योरिटी गार्ड्स अपने-अपने फ्लैट से निकलने वाले हर शख्स को सलाम और नमस्ते जरूर ठोकते हैं।  कई बार अटपटा लगता है पर आदत-सी हो गई है। मैं उम्र के हिसाब से पलट कर 'नमस्ते भैया' और 'नमस्ते अंकल' के तौर पर जवाब देता हूं। व्यक्ति की गरिमा और उसके भीतर की खुशी के लिए! अंकल बोलते ही कई उम्रदराज सिक्योरिटी गार्डस के चेहरे की रौनक दोगुनी हो जाती है। पिछले दिनों जब मैं पार्क की तरफ जा रहा था तभी मेरी नजर मुकेश पर पड़ी थी और मैं ठहर गया! मैंने उससे पूछा- 'क्या तुम्हें साहित्य पढ़ने का शौक है।' मेरी बात पर उसने कहा-  'हां सर। जो किताबें मिल जाती हैं, पढ़ लेता हूं। अभी यह किताब पढ़ रहा हूं।' दरअसल, मुकेश को अक्सर