समान प्रवृत्तियां इंसान को चुंबक-सी खींच लेती है। जुड़ाव-सा हो जाता है। जब पहली बार मैंने मुकेश को देखा, तो एकाएक ठहर-सा गया। उसके टेबल पर मधु कांकरिया का उपन्यास 'सेज पर संस्कृत' था और मुझे देखते ही वो कुर्सी से खड़े होकर 'नमस्ते सर' बोला था। हर गगनचुंबी आधुनिक सोसायटी की तरह मेरी सोसायटी का रिवाज भी है कि यहां हर टावर के नीचे पहरा दे रहे सिक्योरिटी गार्ड्स अपने-अपने फ्लैट से निकलने वाले हर शख्स को सलाम और नमस्ते जरूर ठोकते हैं। कई बार अटपटा लगता है पर आदत-सी हो गई है। मैं उम्र के हिसाब से पलट कर 'नमस्ते भैया' और 'नमस्ते अंकल' के तौर पर जवाब देता हूं। व्यक्ति की गरिमा और उसके भीतर की खुशी के लिए! अंकल बोलते ही कई उम्रदराज सिक्योरिटी गार्डस के चेहरे की रौनक दोगुनी हो जाती है। पिछले दिनों जब मैं पार्क की तरफ जा रहा था तभी मेरी नजर मुकेश पर पड़ी थी और मैं ठहर गया! मैंने उससे पूछा- 'क्या तुम्हें साहित्य पढ़ने का शौक है।' मेरी बात पर उसने कहा- 'हां सर। जो किताबें मिल जाती हैं, पढ़ लेता हूं। अभी यह किताब पढ़ रहा हूं।' दरअसल, मुकेश को अक्सर
ललित फुलारा पत्रकार और लेखक हैं. माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय से जर्नलिज्म में एम.ए किया। दैनिक भास्कर , ज़ी न्यूज़ , राजस्थान पत्रिका, न्यूज़18 और अमर उजाला जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं. वर्तमान में ज़ी मीडिया में चीफ-सब एडिटर हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, संस्मरण और कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं। 2022 में कैंपस-यूथ आधारित नॉवेल 'घासी: लाल कैंपस का भगवाधारी' प्रकाशित हुआ। उपन्यास को साहित्य आज तक ने शीर्ष दस किताबों में शामिल किया.