मनोज कुमार झा की ग़जलें पांव देखे पांवों के निशां देखे कैसे-कैसे हमने भी जहां देखे। - मनोज कुमार झा सांझ घिर आई तो तेरा संवरना देखा रात की बांहों में ये किसका मचलना देखा। देखने की हसरत जो रह गई हसरत ही जागते हुए शायद ये मैंने कोई सपना देखा। - मनोज कुमार झा मन है मौसम पतझड़ की तरह कहीं धूल में गुबार के भटकना है। - मनोज कुमार झा यूं ही भटकने में बीती है ये तमाम रात यहां-वहां कभी, कभी क्या तेरे पास। - मनोज कुमार झा जिन्हें हम याद करते हैं कभी वो याद क्या करते ये फ़ितरत है तुम्हारी जो फ़िर भी जां हम देते हैं। - मनोज कुमार झा ये कैसा दर्द का समंदर था आग़ जलती धुआं-धुआं-सी थी। घेर कर हर तरफ़ से क्या कहा कहानी ये कितनी बेबयां-सी थी। - मनोज कुमार झा मौन ही चित्रलिखित है रात की स्याही में तुम करो बात ना बात वो बेमानी है। - मनोज कुमार झा नज़रें मिलीं तो फ़िर बेक़रार क्यों हुईं क्या खेल ऐसा हुआ दो-चार जो हुईं। - मनोज कुमार झा जैसे नदी जलती हुई फ़िर समा गई पहाड़ों में अब समंदर सोखने की उनकी हसरत लाजवाब। - मनोज कुमार झा उनसे मिलना जो हुआ होता दिल ये आईना ज
ललित फुलारा पत्रकार और लेखक हैं. माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय से जर्नलिज्म में एम.ए किया। दैनिक भास्कर , ज़ी न्यूज़ , राजस्थान पत्रिका, न्यूज़18 और अमर उजाला जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं. वर्तमान में ज़ी मीडिया में चीफ-सब एडिटर हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, संस्मरण और कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं। 2022 में कैंपस-यूथ आधारित नॉवेल 'घासी: लाल कैंपस का भगवाधारी' प्रकाशित हुआ। उपन्यास को साहित्य आज तक ने शीर्ष दस किताबों में शामिल किया.