पालघर की घटना 16 अप्रैल को घटी। करीब हफ्ते भर तक सूबे की सरकार चुप्पी साधे रही। मीडिया संस्थानों के ख़बरनवीसों को कोनो-कान खबर तक नहीं लगी। या फिर वीडियो सामने आने के बाद भी घटना के बड़े बन जाने तक इंतजार होता रहा। सोशल मीडिया पर दबाव बना और घटना का वीडियो तेजी से वायरल होने लगा। सामाजिक माध्यम के ख़बरनवीसों के बीच आक्रोश पनपा और विमर्श होने लगा कि साधुओं की नृशंस हत्या पर सरकार और मीडिया चुप्प क्यों है?
महाराष्ट्र सरकार पर सोशल मीडिया एक्टिविस्टों का दबाव बना और अब तक देश के बड़े मीडिया संस्थानों ने भी ख़बर लपल ली। विपक्ष भी आक्रोशित हो गया और सूबे की सरकार पर निशाना साधा जाने लगा। आनन फानन में सूबे के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का बयान आया- 'न्याय किया जाएगा। अब तक लेफ्ट और राइट एंगल से मीडिया में इस घटना की कवरेज हो चुकी थी। बुद्धिजीवियों के ज़ुबान पर चढ़े रहने वाले कुछ अख़बारों और मीडिया संस्थानों ने 'दो लोगों की हत्या' के शीर्षक से खबर चलाई। जबकि दूसरी तरफ बहुत-से अखबारों और टेलीविजन चैनलों एवं वेबसाइटों पर 'दो साधुओं' की हत्या शीर्षक से खबर चलाई गई। उदारवादी और अल्पसंख्यकों के हितों पर अपनी लोकप्रियता भुनाने वाले पत्रकार अब तक सोशल मीडिया पर चुप्पी साधे हुए थे। वामपंथी रुझाने और कांग्रेस समर्थित पत्रकार भी अभी तक घटना पर चुप्पी साधे रहे। दूसरी तरफ संत समाज आक्रोशित हो गया।
दक्षिणपंथी पत्रकारों ने घटना का जमकर विरोध किया। सोशल मीडिया पर घटना को सांप्रदायिक रंग दिया जाने लगा। दक्षिणपंथ की तरफ रुझान रखने वाले सामाजिक माध्यम के ख़बरनवीसों में जमकर बहस होने लगी। वाम और दक्षिण रहित सामान्य इंटरनेट और स्मार्टफोन उपभोक्ता घटना से भाव विहल हो उठा और आंखों में आंसू भर लाया। देशभर के परिवारों के घर के भीतर के आपसी संवाद में महाराष्ट्र सरकार के प्रति आक्रोश पनप उठा। सनद रहे बुद्धिजीवी और सेक्युलर बुद्धि अभी तक चुप्पी साधे हुए थी। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री सामने आए और स्पष्टीकरण दिया कि यह घटना सांप्रदायिक नहीं थी।
महाराष्ट्र सरकार पर सोशल मीडिया एक्टिविस्टों का दबाव बना और अब तक देश के बड़े मीडिया संस्थानों ने भी ख़बर लपल ली। विपक्ष भी आक्रोशित हो गया और सूबे की सरकार पर निशाना साधा जाने लगा। आनन फानन में सूबे के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का बयान आया- 'न्याय किया जाएगा। अब तक लेफ्ट और राइट एंगल से मीडिया में इस घटना की कवरेज हो चुकी थी। बुद्धिजीवियों के ज़ुबान पर चढ़े रहने वाले कुछ अख़बारों और मीडिया संस्थानों ने 'दो लोगों की हत्या' के शीर्षक से खबर चलाई। जबकि दूसरी तरफ बहुत-से अखबारों और टेलीविजन चैनलों एवं वेबसाइटों पर 'दो साधुओं' की हत्या शीर्षक से खबर चलाई गई। उदारवादी और अल्पसंख्यकों के हितों पर अपनी लोकप्रियता भुनाने वाले पत्रकार अब तक सोशल मीडिया पर चुप्पी साधे हुए थे। वामपंथी रुझाने और कांग्रेस समर्थित पत्रकार भी अभी तक घटना पर चुप्पी साधे रहे। दूसरी तरफ संत समाज आक्रोशित हो गया।
दक्षिणपंथी पत्रकारों ने घटना का जमकर विरोध किया। सोशल मीडिया पर घटना को सांप्रदायिक रंग दिया जाने लगा। दक्षिणपंथ की तरफ रुझान रखने वाले सामाजिक माध्यम के ख़बरनवीसों में जमकर बहस होने लगी। वाम और दक्षिण रहित सामान्य इंटरनेट और स्मार्टफोन उपभोक्ता घटना से भाव विहल हो उठा और आंखों में आंसू भर लाया। देशभर के परिवारों के घर के भीतर के आपसी संवाद में महाराष्ट्र सरकार के प्रति आक्रोश पनप उठा। सनद रहे बुद्धिजीवी और सेक्युलर बुद्धि अभी तक चुप्पी साधे हुए थी। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री सामने आए और स्पष्टीकरण दिया कि यह घटना सांप्रदायिक नहीं थी।
प्रतिकात्मक तस्वीर साभार-न्यू इंडियन एक्सप्रेस |
फिर खेल देखिए- लेफ्ट लर्निंग मीडिया पर्सन और बुद्धिजीवी इस बयान पर कूद पड़े। उनकी तरफ से शोर हो उठा- घटना को सांप्रदायिक रंग न दिया जाए। हिंदू संतों को मारने वाले लोग मुस्लिम नहीं थे। सोशल मीडिया पर कांग्रेसी पत्रकार/वामपंथी जोशीले और तमाम बुद्धिजीवी सक्रिय हो गए और अब इस घटना के बारे में खूब लिखा जाने लगा। लेकिन क्या? यह कि दो संतों को मारने वाली भीड़ मुस्लिम नहीं थी। क्या यह इस घटना सांप्रदायिक एंगल नहीं है। इस घटना के साथ जनता की भावनाएं इसलिए गहराई से जुड़ी थी कि दो संतों को पीट-पीटकर मार दिया गया था। संत समाज में पूज्यनीय होते हैं। संतों पर हमला आम जनमानस में सनातन पर हमले का ही भाव लिया होता है। अब तक वायरल वीडियो में बुरी तरह से पीटने के बाद भी मुस्कराता हुआ 70 साल के गिरी महाराज का चेहरा लोगों के दिलों में उतर चुका था। संत की संतई ये ही होती है।
जो लोग इस घटना को सांप्रदायिक रंग देने के लिए दूसरों पर उंगुली उठा रहे थे वो खुद भी घटना को सांप्रदायिक रंग देने में लगे हुए थे। आम लोग संतों की हत्या से दुखी थे। न ही संतों को मुस्लिम या हिंदू भीड़ ने मारा इससे। इस बीच दो थ्योरी मीडिया में सामने आई कि व्हॉट्सएप अफवाह/सोशल मीडिया अफवाह और शक के चलते संतों को मारा गया। यह सूबे की सरकार की तरफ से प्लोटिट थ्योरी हो सकती है क्योंकि घटना को दूसरी तरफ मोड़ना था। हालांकि, अब तक 100 से ज्यादा गिरफ्तारियां हो चुकी थी। लेकिन इस बीच यह थ्योरी गले में नहीं पचती है कि बच्चा चुराने के शक/ और साधु वेश में मुस्लिमों के आगमन के शक में हिंदू संतों की हत्या हुई थी। पुलिस के सामने दो संतों की जान ली जा रही थी और पुलिस ने उनके शवों को टैंपों में डालने के सिवा कुछ नहीं किया। चाहे तो बहुत कुछ हो सकता था। सरकार एक हफ्ते बाद जागी इतनी बड़ी घटना में। किसी भी बुद्धिजीवी ने महाराष्ट्र सरकार की थ्योरी पर सवाल नहीं उठाया जबकि अगर घटना उलट होती तो लेफ्ट लर्निंग पत्रकारों का पूरा रवैया ही अलग होता। ये तो भला हो स्मार्टफोन और इंटरनेट के युग का कि संतों के नृशंस हत्या का वीडियो बाहर आ गया, नहीं तो भीड़ के इस अमानवीय कृत्य को दुनिया नहीं देख पाती।
महाराष्ट्र पालघर हिंसा में मारे गए संत सुशील गिरी |
खैर- इस बीच मेरी नजर बीजेपी के नेशनल सेकेट्री सुनील देवधर के एक ट्वीट पर गई। इससे जो अर्थ निकलता है उसको आप अपनी मेधा से समझना और व्याख्या करना। सुनील देवधर ने कहा- कोई भी भारतीय आदीवासी किसी भी हालत में तब तक किसी भगवा धारी संत पर हमला नहीं कर सकता जब तक कि उसका ब्रेनवॉश न हुआ हो। जहां यह घटना घटी वो क्षेत्र कम्युनिस्ट (वामपंथी) दबदबे वाला क्षेत्र है। वहां के स्थानीय विधायक सीपीआई से हैं। नक्सलियों का वहां प्रभाव है। यह बात तो सर्वविदित है कि पिछले सालों में भगवा रंग के प्रति सेक्युलर और वामपंथियों की नफरत बढ़ी है।
पालघर गांव की सरपंच चित्रा चौधरी का कहना है कि भीड़ इतनी उग्र थी कि उन्हें भी मार डालती। भीड़ से साधुओं को बचाने के लिए उन्होंने तीन घंटे तक संघर्ष किया, लेकिन भीड़ हैवान बन चुकी थी। उनका कहना है कि इस घटना में ज्यादातर उन लोगों को ही गिरफ्तार किया गया है जो कि बेगुनाह हैं और अलग-अलग गांवों से हैं। चित्रा का कहना है कि पुलिस के पहुंचने तक उन्होंने भीड़ से दो साधु और उनके ड्राइवर को बचाए रखा और जैसे ही पुलिस वहां पहुंची वो वहां से पीछे हट गई, क्योंकि उग्र भीड़ उनकी भी हत्या कर सकती थी। वहीं, कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि साधुओं की लिचिंग के दो आरोपियों का भाजपा पार्टी से ताल्लुक है। हालांकि भाजना ने इन आरोपों को नकार दिया है और पार्टी का कहना है कि दोनों आरोपी पार्टी के सदस्य नहीं है।
पालघर गांव की सरपंच चित्रा चौधरी का कहना है कि भीड़ इतनी उग्र थी कि उन्हें भी मार डालती। भीड़ से साधुओं को बचाने के लिए उन्होंने तीन घंटे तक संघर्ष किया, लेकिन भीड़ हैवान बन चुकी थी। उनका कहना है कि इस घटना में ज्यादातर उन लोगों को ही गिरफ्तार किया गया है जो कि बेगुनाह हैं और अलग-अलग गांवों से हैं। चित्रा का कहना है कि पुलिस के पहुंचने तक उन्होंने भीड़ से दो साधु और उनके ड्राइवर को बचाए रखा और जैसे ही पुलिस वहां पहुंची वो वहां से पीछे हट गई, क्योंकि उग्र भीड़ उनकी भी हत्या कर सकती थी। वहीं, कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि साधुओं की लिचिंग के दो आरोपियों का भाजपा पार्टी से ताल्लुक है। हालांकि भाजना ने इन आरोपों को नकार दिया है और पार्टी का कहना है कि दोनों आरोपी पार्टी के सदस्य नहीं है।
ललित फुलारा
hamen long term plan karanaa hogaa
जवाब देंहटाएं