स्त्री है वह
वह फ़िलहाल
अकेला रहना चाहती है
धीरे-धीरे गहराते
इस निविड़ अंधेरे में
खो जाना चाहती है
जो चाहती है वह
क्या अच्छी तरह जानती है
वह उदास है
वह क्यों उदास है
वह सब पर भरोसा नहीं कर सकती
स्त्री है वह
लंपट समाज में
देह की सुरक्षा
चुनौती है उसके लिए
वह जल्दी नाराज़ नहीं होती
कोई उसके मादापन के चटखारे भरे
तो वो क्या करे
वह प्रकृति को निहारती है
वह किसी की तलाश में है
धोखे भरी दुनिया में
किसी आत्मीय सच की
तलाश में
वह निकल पड़ती है अकेली
जनशून्य राहों पर
वह भटकती है
भटकते-भटकते
बंद हो जाती है
अपनी आत्मा के अभेद्य दुर्ग में।
- मनोज कुमार झा
मनोज कुमार झा की प्रवृत्ति छपास की नहीं है...बहुत निवेदन करने के बाद उनकी कुछ कविताएं और गजलों को हासिल कर पाया हूं। दैनिकभास्करडॉटकॉम, भोपाल में कॉपी एडिटर के पद पर कार्यरत हैं। हर रोज एक कविता या कुछ न कुछ किसी मुद्दे पर लिखते हैं...लेकिन इतने सालों तक कविता प्रकाशित कराने का ख्याल उनके मन में नहीं आया...पूछने पर कहते हैं...
...'कविता प्रकाशित कराने का ख्याल कभी आया ही नहीं, बस लिखने का ही ख्याल आता है।'
वह फ़िलहाल
अकेला रहना चाहती है
धीरे-धीरे गहराते
इस निविड़ अंधेरे में
खो जाना चाहती है
जो चाहती है वह
क्या अच्छी तरह जानती है
वह उदास है
वह क्यों उदास है
वह सब पर भरोसा नहीं कर सकती
स्त्री है वह
लंपट समाज में
देह की सुरक्षा
चुनौती है उसके लिए
वह जल्दी नाराज़ नहीं होती
कोई उसके मादापन के चटखारे भरे
तो वो क्या करे
वह प्रकृति को निहारती है
वह किसी की तलाश में है
धोखे भरी दुनिया में
किसी आत्मीय सच की
तलाश में
वह निकल पड़ती है अकेली
जनशून्य राहों पर
वह भटकती है
भटकते-भटकते
बंद हो जाती है
अपनी आत्मा के अभेद्य दुर्ग में।
- मनोज कुमार झा
मनोज कुमार झा की प्रवृत्ति छपास की नहीं है...बहुत निवेदन करने के बाद उनकी कुछ कविताएं और गजलों को हासिल कर पाया हूं। दैनिकभास्करडॉटकॉम, भोपाल में कॉपी एडिटर के पद पर कार्यरत हैं। हर रोज एक कविता या कुछ न कुछ किसी मुद्दे पर लिखते हैं...लेकिन इतने सालों तक कविता प्रकाशित कराने का ख्याल उनके मन में नहीं आया...पूछने पर कहते हैं...
...'कविता प्रकाशित कराने का ख्याल कभी आया ही नहीं, बस लिखने का ही ख्याल आता है।'
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