दिल्ली विधानसभा चुनाव भारत की राजनीति का 'राम-रावण' युद्ध से कमतर नहीं है। हालांकि, राम-रावण युद्ध और दिल्ली विधानसभा चुनाव में कोई साम्य नहीं है, लेकिन कार्यकर्ता हर उस चीज में साम्य बना देते हैं, जिससे वो अपनी बात और बेहतर तरह से कर पाएं।
'राम-रावण युद्ध' बिल्कुल नई टर्मिनॉलोजी है। लेकिन, इससे आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह बात किस पार्टी के समर्थक ने कही होगी।-- चाय की दुकान पर पार्टी कार्यकर्ता होने का फर्ज निभा रहे उस व्यक्ति से बात का भावार्थ समझते हुए जब पूछने की कोशिश की गई कि 'राम-रावण' युद्ध में 'बेदी' कहां ठहरती है? तो उसने बिना किसी हिचक के कहां- 'बलि का बकरा'..
पढ़े लिखे उस पार्टी कार्यकर्ता ने बाकायदा अंग्रेजी उच्चारण किया- स्कैप्गोट (Scapegoat)। उसकी बात से बचपन में पढ़े बांकेलाल की कॉमिक्स 'बलि का बकरा' याद आ गई! राजनीति ज्ञान में माहिर उस व्यक्ति ने फरमाए..चुनाव जीते तो जय मोदी...नमो..नमो और हारे तो बलि की 'बेदी'!
घर बना राजनीति का अखाड़ा
दिल्ली विधानसभा चुनाव की तारीख की घोषणा होते ही अपना घर भी राजनीति का अखाड़ा बन गया है। छोटा भाई अभी बारवीं पास करके आया, लेकिन 'व्हट्सअप' का ऐसा असर हुआ है कि सीधे केजरी विरोधी बन गया।
घर में अब मोदी-मोदी की गूंज है। फेसबुक पर वो नमो-नमो का झंडा लिए हुए है। जब पूछा- 'भाई, क्यों केजरीवाल का विरोध और मोदी का समर्थन,' बोला- 'बोला मोदी को देश बदलना है, केजरीवाल तो खुद को मुफलर नहीं बदल पाता!'
विचारधारा की बात आते ही मुझे अपने उस दोस्त की याद आती है- जो राम की तो पूजा करता था, लेकिन कृष्ण को जमकर गरियाता था। वाकिया बड़ा दिलचस्प है- जो मैंने सिर्फ सुना है, " एक बार वृंदावन में उसकी चप्पल चोरी हो गई, बस क्या फिर शुरू कर दिया गरियाना और बोला ये माखनचोर कब से चप्पल चोर बन गया! (धार्मिक भावनाएं आहत हो तो क्षमा)....
ललित फुलारा
'राम-रावण युद्ध' बिल्कुल नई टर्मिनॉलोजी है। लेकिन, इससे आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह बात किस पार्टी के समर्थक ने कही होगी।-- चाय की दुकान पर पार्टी कार्यकर्ता होने का फर्ज निभा रहे उस व्यक्ति से बात का भावार्थ समझते हुए जब पूछने की कोशिश की गई कि 'राम-रावण' युद्ध में 'बेदी' कहां ठहरती है? तो उसने बिना किसी हिचक के कहां- 'बलि का बकरा'..
पढ़े लिखे उस पार्टी कार्यकर्ता ने बाकायदा अंग्रेजी उच्चारण किया- स्कैप्गोट (Scapegoat)। उसकी बात से बचपन में पढ़े बांकेलाल की कॉमिक्स 'बलि का बकरा' याद आ गई! राजनीति ज्ञान में माहिर उस व्यक्ति ने फरमाए..चुनाव जीते तो जय मोदी...नमो..नमो और हारे तो बलि की 'बेदी'!
घर बना राजनीति का अखाड़ा
दिल्ली विधानसभा चुनाव की तारीख की घोषणा होते ही अपना घर भी राजनीति का अखाड़ा बन गया है। छोटा भाई अभी बारवीं पास करके आया, लेकिन 'व्हट्सअप' का ऐसा असर हुआ है कि सीधे केजरी विरोधी बन गया।
घर में अब मोदी-मोदी की गूंज है। फेसबुक पर वो नमो-नमो का झंडा लिए हुए है। जब पूछा- 'भाई, क्यों केजरीवाल का विरोध और मोदी का समर्थन,' बोला- 'बोला मोदी को देश बदलना है, केजरीवाल तो खुद को मुफलर नहीं बदल पाता!'
विचारधारा की बात आते ही मुझे अपने उस दोस्त की याद आती है- जो राम की तो पूजा करता था, लेकिन कृष्ण को जमकर गरियाता था। वाकिया बड़ा दिलचस्प है- जो मैंने सिर्फ सुना है, " एक बार वृंदावन में उसकी चप्पल चोरी हो गई, बस क्या फिर शुरू कर दिया गरियाना और बोला ये माखनचोर कब से चप्पल चोर बन गया! (धार्मिक भावनाएं आहत हो तो क्षमा)....
ललित फुलारा
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