इंसान की नब्ज पकड़ने में माहिर ठग
ठग प्रयोगधर्मिता में माहिर होते हैं। उनके ठगने के तरीके बेहद सदे होते हैं। लाख कोशिश कर लो उनके चंगुल में फंस ही जाओगे। इंसान की नब्ज पकड़ने की कला में माहिर ठगों का गिरोह आजकल नोएडा में अपना अड्डा जमाए हुए है। पिछले छह महीने से ये गिरोह रास्ता रोक भोले-भाले लोगों को अपना शिकार बना रहा है। कुछ दिन पहले नोएडा के 12-22 सेक्टर में इस गिरोह की चुपड़ी बातों में हम भी आ गए। अग्रवाल स्वीट से आगे बढ़े ही थे कि अचानक एक आदमी, गोद में दुधमुंहा बच्चा लिए औरत और नंगे पैर चल रहे एक बच्चे ने रास्ता रोक लिया।
ठग प्रयोगधर्मिता में माहिर होते हैं। उनके ठगने के तरीके बेहद सदे होते हैं। लाख कोशिश कर लो उनके चंगुल में फंस ही जाओगे। इंसान की नब्ज पकड़ने की कला में माहिर ठगों का गिरोह आजकल नोएडा में अपना अड्डा जमाए हुए है। पिछले छह महीने से ये गिरोह रास्ता रोक भोले-भाले लोगों को अपना शिकार बना रहा है। कुछ दिन पहले नोएडा के 12-22 सेक्टर में इस गिरोह की चुपड़ी बातों में हम भी आ गए। अग्रवाल स्वीट से आगे बढ़े ही थे कि अचानक एक आदमी, गोद में दुधमुंहा बच्चा लिए औरत और नंगे पैर चल रहे एक बच्चे ने रास्ता रोक लिया।
स्थिति समझ में आती इससे
पहले ही व्यक्ति ने अपने भूखे बच्चे की दुहाई देकर पैसों की फरमाइश कर डाली। साथ में
खड़ी औरत एकदम शांत, उम्मीदभरी नजरों से सिर्फ टुकुर-टुकुर ताक रही थी। बच्चे की
दशा देखकर हमने उसे कुछ खाने का सामान दिलाया। साथ ही
उसके यों भीख मांगने का कारण भी जानना चाहा।
व्यक्ति ने अपनी इस दशा का
कारण एक ठेकेदार को बताया। उसका कहना था कि ठेकेदार ने उन्हें मजदूरी के लिए महाराष्ट्र से यहां बुलाया था, अब दो दिन से वो फोन नहीं उठा रहा है। ऐसे में उनके
पास न तो यहां रहने का कोई ठिकाना है और न ही वापस जाने के लिए पैसे। ठेकेदार का
नंबर मिलाया तो फोन बंद। व्यक्ति ने बताया कि वो अकेला नहीं हैं, और भी मजदूर हैं।
जिनके जेब में पैसे थे, वो वापस चले गए हैं। कुछ दूरी पर एक दूसरा व्यक्ति खड़ा था। उसके
साथ भी गोद में बच्चा लिए एक औरत और नंगे पैर खड़ा बच्चा था।
दोनों व्यक्ति मराठी टच
वाली हिंदी में अपनी व्यथा सुनाने लगे। पुलिस कम्पलेंट और एनजीओ में ठहरने का
प्रस्ताव उन्होंने ठुकरा दिया। वो वापस जाने के लिए मदद की मांग करने लगे। 100
रुपए देकर जैसे ही 55 की सोसायटी में पहुंचा तो पता चला कि कुछ दिन पहले ऐसा ही
बहाना उन्होंने हमारी सोसायटी की एक आंटी से भी बनाया था। उनका हुलिया भी ऐसा ही
था और वो भी अपने को महाराष्ट्र के बता रहे थे। अब तो पक्का यकीन हो गया कि हम ठगी
के शिकार हुए हैं।
जब घटना का जिक्र इधर-उधर
किया तो पता चला कि सोसायटी के तीन-चार लोगों को वो 12-22 सेक्टर में पिछले कुछ
महीनों के दौरान मिल चुके हैं। हमारे ही एक पत्रकार साथी के जेब से वो 4 महीने
पहले धन निकलवा चुके हैं। आपको भी अगर ऐसे ही कुछ लोग मिले तो उनकी भोली-भाली
बातों में न आइएगा। ठगी का ये स्टाइल नया तो नहीं है, लेकिन जल्दी विश्वास करने
वाला ज़रूर है। ऐसे में ये सवाल ज़रूरी हो जाता है कि ज़रूरतमंद और ठग के बीच फर्क
कैसे किया जाए।
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