सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

'नानीसार' पर घिरती रावत सरकार


'नानीसार' पर घिरती रावत सरकार 


'नानीसार' ने पहाड़ के लोगों को एक बार फिर आंदोलन के लिए सड़कों पर उतार दिया है। 'ज़मीन' बनाम ज़मीर का यह संघर्ष उबाल पर है। गैर-कांग्रेसी और गैर-भाजपाई दल मुख्यमंत्री हरीश रावत को सत्ता से बेदखल करने के लिए जोरदार तरीके से लामबंध हो चुके हैं। ज़मीन की लूट से शुरू हुआ यह जनसंघर्ष अब एक राजनीतिक संघर्ष और विकल्प की तलाश का जरिए बना गया है। अब देखना यह है कि नानीसार के बहाने उत्तराखंड में जो नई राजनैतिक चेतना विकसित हो रही है वह कहां तक सफल हो पाती है।

जानकारों का मानना है कि 'नानीसार संकट', नानीसार में इंटरनेशल स्कूल बनाने का ही नहीं है बल्कि पहाड़ के प्राकृतिक संसाधनों के दोहन का संकट है। पहाड़ इस संकट को कई दशकों से झेल रहा है। हिमालयी क्षेत्र की जनता हर दशक में शोषण का शिकार हुई है और राज्य बनने के बाद जो उम्मीदें जगी थीं उनके बीच पहाड़ ने खुद को ठगा- सा महसूस किया है। जनसरोकारों से जुड़े लोगों का कहना है कि उत्तराखंड में एक नए तरह की राजनैतिक चेतना के विकास की जरूरत है। जल, जंगल और जमीन को समझने वाली सरकार और यहां के लोगों की वेदना को समझने वाले नेताओं की जरूरत है। जिस दिन यह संभव हो जाएगा उत्तराखंड में परिवर्तन की कल्पना सार्थक हो जाएगी।

जिंदल के साथ मिलकर ज़मीन के लूट के आरोप में घिरी सरकार

दरअसल, इस पूरे मामले की शुरुआत तब हुई जब रावत सरकार ने अल्मोड़ा जनपद में डीडा-द्वारसा की नानीसार तोप की 354 नाली भूमि (7.61 हेक्टेयर) जिंदल ग्रुप के 'हिमांशु एजुकेशन सोसाइटी' को इंटरनेशनल स्कूल बनाने के लिए दी। सूबे की सरकार पर गांव वालों को अंधेरे में रखकर बिना ग्राम सभा की बैठक बुलाए जमीन का सौदा करने का आरोप लगा। विरोध के बीच मुख्यमंत्री हरीश रावत और बीजेपी सांसद मनोज तिवारी ने स्कूल का शिलान्यास किया।

2 नवंबर को 'नानीसार बचाओ संघर्ष समिति' के नेतृत्व में ग्रामीणों ने शिलान्यास का पट तोड़कर रावत सरकार को चुनौती दी। 22 जनवरी 2016 को अल्मोड़ा न्यायालय ने ग्रामीणों की याचिका पर स्कूल के निर्माण पर रोक लगाने का आदेश जारी किया। 23 जनवरी को 'उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी' के अध्यक्ष पीसी तिवारी और रेखा धस्माना कार्ट का स्टे ऑडर लेकर जब नानीसार पहुंचे तो जिंदल के बाउंसरों ने उनके साथ मारपीट की और स्टे ऑडर को मानने से इंकार कर दिया।

बाउंसरों पर मारपीट का आरोप
'अमर उजाला के कॉम्पेक्ट पर छपा आर्टिकल'


दिल्ली के प्रेस क्लब में आयोजित एक कॉन्फ्रेंस में रेखा धस्माना ने कहा कि 100 से ज्यादा लोगों ने संगठित होकर उनके साथ मारपीट की और उनका फोन भी छीन लिया। उन्होंने बताया कि जिंदल ग्रुप ने निर्माणाधीन स्कूल के गेट को चारों तरफ से तारों से घेर रखा है और उसमें करंट प्रवाहित कर रखा है। मामले के गरमाने पर धस्माना और पीसी तिवारी को जेल में बंद कर दिया गया और उनके खिलाफ एससी/एसटी एक्ट के तहत फर्जी मुकदमा दर्ज करवाया गया।  जेल से बाहर आने के बाद तिवारी ने दिल्ली में आयोजित कॉन्फ्रेंस में कहा कि नानीसार मामले में सत्ता पक्ष से बीच का रास्ता निकालने के लिए उनके पास लगातार फोन आ रहे हैं। लेकिन, उनकी पार्टी विकास का नारा देकर उत्तराखंड में जमीनों को लूट को कतई बर्दाश्त नहीं करेगी। ज़मीनों की लूट के खिलाफ संघर्ष जारी रहेगा।
माओवादी पोस्टर मिलने से मचा हड़कंप
जमीन की कथित लूट का यह मामला गरमा ही रहा था कि इस बीच अल्मोड़ा जिले में नानीसार से लेकर द्वारसों तक जगह-जगह 'माओवादी पोस्टर' मिलने की घटना ने पूरे बहस को ही दूसरी तरफ मोड़ दिया। हालांकि संघर्ष कर रहे सामाजिक संगठन और राजनीतिक पार्टियां इसे राज्य सरकार का षडयंत्र बता रही हैं। आरोप लग रहा है कि रावत सरकार 'माओवाद' का हल्ला मचाकर इस पूरे मामले से लोगों का ध्यान हटाना चाहती है।
'उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी' और 'नानीसार बचाओ संघर्ष समिति' नानीसार प्रकरण को मुद्दा बनाकर रावत सरकार के दमन और लूट-खसोट की नीतियों को जनता के बीच बहस का केंद्र बना रही है। तो वहीं रावत सरकार लामबंध राजनीतिक पार्टियों, जनता और विभिन्न संगठनों के बलपूर्वक दमन पर अड़ी हुई है। ऐसे में उत्तराखंड में एक नए तरह के राजनैतिक संकट के गहराने का आसार साफ दिख रहे हैं। 
वरिष्ठ पत्रकार चारु तिवारी का कहना है कि उत्तराखंड में जमीनों की लूट की पूरी समस्या राजनीतिक है और इसका समाधान भी राजनीतिक ही निकलना चाहिए। एक तरफ राज्य के मुख्यमंत्री लोगों से मंडुवा-झुंगर उगाने के लिए कहते हैं दूसरी तरफ कृषि योग्य भूमि को पूंजीपतियों के हवाले करते जा रहे हैं। अब देखिए, पता चला है कि जिंदल ग्रुप के ज्यादातर स्कूलों में सालाना फीस 22 लाख रुपए के करीब होती है। ऐसे में इस स्कूल में वहां के स्थानीय लोगों के बच्चे किस तरह पढ़ेंगे यह रावत सरकार ही जाने।
आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक, इस अंतरराष्ट्रीय स्कूल में सात श्रेणियों में दाखिले की बात कही गई है इसमें उत्तराखंड का नाम कही नहीं है। ये श्रेणियां इस तरह हैं- कॉरपोरेट जगत, अप्रवासी भारतीय, उत्तर पूर्व के भारतीय छात्र-छात्राएं, भारत में रह रहे विदेशी, भारत के निर्वासित कम्युनिटी, विश्व स्तरीय एनजीओ द्वारा प्रायोजित क्षेत्रों के बच्चे। इसके अलावा 30 फीसदी सीटें शासन के लिए रिजर्व रहेंगी जिसमें इस क्षेत्र में कार्य कर रहे अधिकारियों और कर्मचारियों के बच्चों को दाखिला मिलेगा। एक तरफ देश के अंदर करीब 1 लाख 33 हजार सरकारी स्कूलों को बंद करने की प्लानिंग हो रही है। उत्तराखंड के अंदर ही 38 सौ स्कूलों की लिस्ट बनाई जा रही है। वहीं दूसरी तरफ सूबे की सरकार ने बंजर भूमि का हवाला देकर जिंदल के साथ 354 नाली जमीन का सौदा कर दिया।
विशेषज्ञों के मुताबिक उत्तराखंड में 6 फीसदी से भी कम खेतीयुक्त भूमि रह गई है। गांव के गांव खाली होते जा रहे हैं। पिछले 15 सालों में 19 लाख से ज्यादा लोगों ने पहाड़ को छोड़ा है। घरों में बड़े-बड़े ताले लटक गए हैं। लेकिन, सरकार अभी तक इसके लिए कोई ठोस नीति नहीं बना पाई। ऐसे में जनसरोकारों से ताल्लुक रखने वाले लोग मानने लगे हैं कि उत्तराखंड की राजनीति सुविधाभोगी राजनीति की तरफ चली गई है। 'धंधा' विकास हो गया है और लोगों को समझाया जा रहा है कि तरक्की इसी तरह होती है। 
नया राज्य बनने के बाद सत्ता में आई सरकारों ने सालन, सल्ट और मुक्तेश्वर की सारी जमीने बेच दी। फलों के उत्पादन का सबसे बड़ा क्षेत्र माने जाने वाले रामगढ़ पूरा का पूरा बिक गया। लेकिन, कोई भी सरकार जमीनों की खरीद-फरोख्त पर रोक नहीं लगा पाई ना ही इस तरह का कानून लाई।

रिसोर्टों की भरमार, बाहरी लोगों की बसावत
इस अंतरराष्ट्रीय स्कूल के निर्माण का कार्य जहां चल रहा है वह पूरा इलाका मछखाली क्षेत्र के अंदर आता है। यह रानीखेत और अल्मोड़ा के बीच में पड़ता है। मछखाली ग्राम पंचायत में 12 गांव हैं। आस-पास के सभी गांवों की गिनती की जाए तो इनकी संख्या 19 के करीब बैठती होगी। इन सभी गांवों की ज़मीनों पर किसी ना किसी रूप में बाहरी लोगों का कब्जा हो चुका है। विशेषज्ञ बताते हैं कि रानीखेत से लेकर अल्मोड़ा तक की बेल्ट में बाहरी लोग बस चुके हैं। यहां रिसोर्टों की भरमार है और पिछले कुछ सालों में एक नई रिसोर्टनुमा संस्कृति विकसित हो गई है। 

पहाड़ में 1970 के दशक में भी इसी तरह की परिस्थितियां बनी थी। 80 के दौर में शराबबंदी का दौर चला और शराब और खनन माफियाओं ने पहाड़ में पैर जमाना शुरू किया। अब हालात यह कि खनन माफिया, शराब माफियां और भूमाफियाओं की उत्तराखंड में तूती बोलने लगी है। उत्तराखंड में कृषि भूमि की खरीद-फरोख्त पर रोक लगाने के लिए रेवन्यू एक्ट के सेक्शन-18 को लागू किया जाना चाहिए।

ललित फुलारा

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कॉफी टेबल पर नहीं रची गई है अर्बन नक्सल थ्योरी: कमलेश कमल

कमलेश कमल की पैदाइश बिहार के पूर्णिया जिले की है. उनका उपन्यास ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ चर्चित रहा है और कई भाषाओं में अनुवादित भी हुआ है. यह नॉवेल यश पब्लिकेशंस से प्रकाशित हुआ है. हाल ही में उनकी भाषा विज्ञान पर नवीन पुस्तक ‘भाषा संशय- सोधन’ भी आई है. इस सीरीज में उनसे उनकी किताबों और रचना प्रक्रिया के बारे में बातचीत की गई है. मेरी संवेदनाओं और मनोजगत का हिस्सा है बस्तर कमलेश कमल का उपन्यास ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ (Operation Bastar Prem Aur Jung) का कथानक नक्सलवाद पर आधारित है. उनका कहना है कि बस्तर कहीं न कहीं मेरी संवेदनाओं, भाव और मनोजगत का हिस्सा है. मैं ढ़ाई साल बस्तर के कोंडागांव (KONDAGAON BASTAR) में तैनात रहा. पूरा इलाका नक्सल प्रभावित है. नक्सलवाद को न सिर्फ मैंने समझा बल्कि बस्तर की वेदना, पूरी आबोहवा को जाना एवं अनुभूत किया है. एक लेखक को अनुभूत विषय पर ही लिखना चाहिए. लेखक का लेखन किसी ऐसे विषय पर इसलिए नहीं होना चाहिए कि वो सब्जेक्ट चर्चित है. बल्कि वह विषय उसके अनुभव और भाव जगत का हिस्सा भी होना चाहिए. नक्सल केंद्रित जितने भी उपन्यास हैं, उनमें या तो सुरक्षाब

रात का तीसरा पहर- मैं और कुंवर चंद अंधेरे गधेरे को पार करते हुए

मैं कुंवर चंद जी के साथ रात के तीसरे पहर में सुनसान घाटी से आ रहा था। यह पहर पूरी तरह से तामसिक होता है। कभी भूत लगा हो, तो याद कर लें रात्रि 12 से 3 बजे का वक्त तो नहीं! अचानक कुंवर चंद जी मुझसे बोले 'अगर ऐसा लगे कि पीछे से को¬ई आवाज दे रहा है, तो मुड़ना नहीं। रोए, तो देखना नहीं। छल पर भरोसा मत करना, सीधे बढ़ना.. मन डरे, कुछ अहसास हो, तो हनुमान चालिसा स्मरण करो। मैं साथ हूं। आसपास बस घाटियां थीं। झाड़ झंखाड़। गधेरे। ऊपर जंगल और नीचे नदी जिसकी आवाज भी थम चुकी थी। अंधेरा घना। मैं आगे था और कुंवर चंद जी मेरे पीछे हाथ में मसाल लिए चल रहे थे। अचानक बच्चा रोया और छण-छण शुरू हो गई। मैंने पीछे देखना चाहा, तो उन्होंने गर्दन आगे करते हुए 'बस आगे देखो। चलते रहो। छल रहा है। भ्रमित मत होना। कुछ भी दिखे यकीन मत करना। जो दिख रहा है, वो है नहीं और जो है, वह अपनी माया रच रहा है।' बोला ही था कि नीचे खेतों की तरफ ऐसा लगा दो भैंस निकली हैं। रोने की आवाज और तेज हो गई। पीछे मुड़कर मैं कुंवर चंद जी को फिर बताना चाह रहा था कि क्या हो रहा है। उन्होंने मेरी गर्दन आगे करते हुए  जोर से कहा 'भ्रमि

महिला दोस्त के सामने अश्लीलों की तरह पेश आए, बिग बाजार स्टोर में उड़ाते रहे हमारे सम्मान की धज्जियां

मंगलवार शाम जीआईपी मॉल (नोएडा सेक्टर-18) के 'बिग बाजार' स्टोर में, मेरे व मेरी फ्रेंड के साथ बदसलूकी हुई। कपड़े के 'प्राइस टैग' के संबंध में। दरअसल जो प्राइस टैग लगा था कैश काउंटर पर उससे ज्यादा कीमत मांगी जा रही  थी जिसपर मैं सवाल कर रहा था। मैनेजर मुझे दूसरे रूम में ले गया जहां  करीब 10-12 लोगों ने ज़लील किया। मेरे साथ मेरी महिला मित्र भी मौजूद  थी। बावजूद वो अश्लील फब्तियां कसते रहे। अपमानित किए और  धमकाया। लगातार दबाव बनाते रहे- हम यह कबूल कर लें 'प्राइस टैग' हमने बदला है। उन सभी का व्यवहार गुंडों जैसा था। हमारी छवि की धज्जियां उड़ाते रहे। वो हंसें जा रहे थे। एक के बाद एक आता और हमें चोर ठहराते हुए-फब्तियां कसता। उंगली दिखाता और घर नहीं जाने देने की धमकी देता। हमने वीडियो फुटेज देखने की मांग की तो हमें गाली दी गई और बोला गया- 'तेरा बाप देखेगा पांच घटें बैठकर वीडियो फुटेज।' वो लोग इतने अंसवेदनशील थे कि मेरी महिला मित्र का भी लिहाज नहीं किया। यह वाकया ऐसे रेपूटेटिड स्टोर में किया गया जिसे सरकार ने करेंसी पेमेंट जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी के लिए चुना ह