लिट्टी-चौखे ने ही पहाड़ और बिहार को जोड़ने का काम किया था। बाकि तो धुर विरोध था। सब्जियां लाने, आटा पिसवाने और गैस भरवाने में आगे रहने के चलते उसे ‘मुखिया’ की उपाधि मिली। बाद, सबकी जुबान पर यह नाम चढ़ता चला गया। उसकी खासियत थी हद से ज्यादा धैर्यवान रहना। पूरे दो साल वह इसी सिद्धांत के साथ नाक की सीध पर चलता रहा।
बस एक बार कंट्रोवर्सी तब पैदा हुई जब उसने वृंदावन में कृष्ण को गरियाया और जोर-जोर से जय श्रीराम के नारे लगाए। बाद में साथ गए लोगों ने खुलासा किया- ‘चप्पल नई और महंगी थी इसलिए धैर्य लूज पड़ा ।’ हालांकि, जब भी इस बात का जिक्र आया वह ठेठ लहजे में कहता रहा ‘कृष्ण तो था ही बचपन से चोर। अगर चोर कह दिया तो क्या गलत किया?’ उसकी इस बात का जवाब किसी के पास नहीं था क्योंकि यह आस्था का विषय था।
पहले मुलाकात के बाद सबने कहा वो दिखता जरूर अजीब है लेकिन समझ में आता है। फिर कहा गया वो दिखता सही है, लेकिन अजीब है, समझ में कम आता है। इसके बाद से लोक में विख्यात हो गया कि उसकी आंखों में साक्षात खजुराहो के दर्शन होते हैं। बाद में किसी तरह सेटलमेंट हुआ, एक साल बाद आंखों वाली बात दब पाई। और उसे लड़कियों से भाई के रूप में भाव मिलने लगा। कुछ दिनों की खुशी एक आइसक्रीम कांड ने पलभर में छीन ली। जो माहौला बना वह इस तरह था- ‘अरे गुरु मुखिया तो लड़कियों को अकेले में ले जाकर आइसक्रीम ऑफर करता है।’ इसके बाद से उसे सुंदरियों ने भाई बनाना भी छोड़ दिया।
एक रात दुखी मन से मुखिया ने राज खोलते हुए बताया ‘ वो लड़की रोज हाई सर कहती। दिन में जितनी बार दिखे उतनी बार हाथ हिलाती। देखते ही मुस्कराती। कई बार कुछ सेकेंड के लिए तांकती रहती। सौभाग्य से एक दिन गेट पर मुठभेड़ हो गई। चिलचिलाती गर्मी थी। बात करने का और कोई बहाना नहीं था इसलिए आइसक्रीम ऑफर कर डाली। अब जेब का भी अपना हिसाब था। इसलिए साथ में ये जोड़ दिया अकेले आना सहेलियों को मत लाना।‘ फिर क्या पूरा कॉलेज जान गया।
जब पहली बार भाव मिला तो उससे पहले तक मुखिया कई शीशे सिर्फ इसलिए तोड़ चुका था क्योंकि उसे अपनी दो आखों में भूरी और सफेद डबडबी के सिवाय कुछ और नजर नहीं आया। जबकि वो खुद मानने लगा था यहां जरूर कुछ लोच्चा है। अब वह कसम खा चुका था कभी जीवन में किसी लड़की को आइसक्रीम नहीं खिलायेगा।
उसकी सीधी फिलोसफी थी ईष्या इज मस्ट। वह कहता दोस्तों से ना जलूं तो क्या बीड़ी से जलूं। जिस दिन खून ज्यादा जलता उसका माथा ठनका रहता, दिल की धड़कन बड़ी रहती और चेहरे की रौनक हवा-हवाई। इसके बाद अगले दिन की जलन को रिकवरी करने के लिए वह रात में आधा लीटर दूध गटकता। उसका मेरे साथ एक खास तरह का समझौता था। मुझे चेतावनी मिली थी अगर हफ्ते में दो सेब, एक अनार नहीं मिला तो जलन दृष्टि का प्रकोप मेरे ऊपर शनि से भी ज्यादा खतरनाक तरह से चढ़ेगा। जब तक उसकी शर्त मानी गई तब तक उसने इमानदारी बरती बाद बोल-बोलकर जलना शुरू किया।
अब जब दो साल से ज्यादा होने को आए तो पहली बार पंडित का दिमाग यह बात सिद्ध कर पाया कि जरूर थ्री इडिएट का उसपर असर रहा है। कुछ देर ऊकडू बैठकर पंडित ने इलाहाबादी ज्ञान बांचा। बाद प्रेशर बनते ही मुखिया को क्लिन चीट थमा दी। इसके बाद के इस निष्कर्ष पर कि ईष्या की प्रवृत्ति स्वाभाविक है और लाख नहीं चाहने पर करोड़ हो जाती है, मैं कमरे में और पांडे पाखाने में खुद ही समझा। आगे बुद्धिजीवी बहस होती, पहले ही एक गोपनीय व्हट्सअप मैसेज ने बताया- मुखिया ने ईष्या को अपने मन से भगाने की भूमिहार कसम खाई है। उसे अब इस बात का इलहाम हो गया है कि जलन के बाद आधे लीटर दूध में खर्च होने वाला पैसा, वैसी सेहत नहीं दे पा रहा है जैसे गांव के पट्टों की है। इसलिए ईष्या को ध्यान से भगाया जाए और दूध में खर्च होने वाला पैसा शादी के लिए बचाया जाए। अब पूरा यूपी-बिहार जान गया है पत्रकार की तनख्वाह 20 लाख का दहेज झटकने लायक नहीं होती।
अब जिन-जिन ने सुमित्रानंदन पंत को पढ़ा है वह जानना चाहते हैं कि मुखिया अपने मन से ईष्या को कैसे भगायेगा। चलिए पहले अब एक रिवर्स गैर मारते हैं। माना सामने पोरवाल की दुकान है।.....इंतजार करिए
नोट- किसी भी जिंदा और मरे हुए व्यक्ति से इन घटनाओं का कोई संबंध नहीं है। अगर आप किसी के साथ जोड़ना चाहे तो आजादी आपकी। मुखिया मात्र एक कल्पना है.. आप चाहे तो सच समझ सकते हैं।
बस एक बार कंट्रोवर्सी तब पैदा हुई जब उसने वृंदावन में कृष्ण को गरियाया और जोर-जोर से जय श्रीराम के नारे लगाए। बाद में साथ गए लोगों ने खुलासा किया- ‘चप्पल नई और महंगी थी इसलिए धैर्य लूज पड़ा ।’ हालांकि, जब भी इस बात का जिक्र आया वह ठेठ लहजे में कहता रहा ‘कृष्ण तो था ही बचपन से चोर। अगर चोर कह दिया तो क्या गलत किया?’ उसकी इस बात का जवाब किसी के पास नहीं था क्योंकि यह आस्था का विषय था।
पहले मुलाकात के बाद सबने कहा वो दिखता जरूर अजीब है लेकिन समझ में आता है। फिर कहा गया वो दिखता सही है, लेकिन अजीब है, समझ में कम आता है। इसके बाद से लोक में विख्यात हो गया कि उसकी आंखों में साक्षात खजुराहो के दर्शन होते हैं। बाद में किसी तरह सेटलमेंट हुआ, एक साल बाद आंखों वाली बात दब पाई। और उसे लड़कियों से भाई के रूप में भाव मिलने लगा। कुछ दिनों की खुशी एक आइसक्रीम कांड ने पलभर में छीन ली। जो माहौला बना वह इस तरह था- ‘अरे गुरु मुखिया तो लड़कियों को अकेले में ले जाकर आइसक्रीम ऑफर करता है।’ इसके बाद से उसे सुंदरियों ने भाई बनाना भी छोड़ दिया।
एक रात दुखी मन से मुखिया ने राज खोलते हुए बताया ‘ वो लड़की रोज हाई सर कहती। दिन में जितनी बार दिखे उतनी बार हाथ हिलाती। देखते ही मुस्कराती। कई बार कुछ सेकेंड के लिए तांकती रहती। सौभाग्य से एक दिन गेट पर मुठभेड़ हो गई। चिलचिलाती गर्मी थी। बात करने का और कोई बहाना नहीं था इसलिए आइसक्रीम ऑफर कर डाली। अब जेब का भी अपना हिसाब था। इसलिए साथ में ये जोड़ दिया अकेले आना सहेलियों को मत लाना।‘ फिर क्या पूरा कॉलेज जान गया।
जब पहली बार भाव मिला तो उससे पहले तक मुखिया कई शीशे सिर्फ इसलिए तोड़ चुका था क्योंकि उसे अपनी दो आखों में भूरी और सफेद डबडबी के सिवाय कुछ और नजर नहीं आया। जबकि वो खुद मानने लगा था यहां जरूर कुछ लोच्चा है। अब वह कसम खा चुका था कभी जीवन में किसी लड़की को आइसक्रीम नहीं खिलायेगा।
उसकी सीधी फिलोसफी थी ईष्या इज मस्ट। वह कहता दोस्तों से ना जलूं तो क्या बीड़ी से जलूं। जिस दिन खून ज्यादा जलता उसका माथा ठनका रहता, दिल की धड़कन बड़ी रहती और चेहरे की रौनक हवा-हवाई। इसके बाद अगले दिन की जलन को रिकवरी करने के लिए वह रात में आधा लीटर दूध गटकता। उसका मेरे साथ एक खास तरह का समझौता था। मुझे चेतावनी मिली थी अगर हफ्ते में दो सेब, एक अनार नहीं मिला तो जलन दृष्टि का प्रकोप मेरे ऊपर शनि से भी ज्यादा खतरनाक तरह से चढ़ेगा। जब तक उसकी शर्त मानी गई तब तक उसने इमानदारी बरती बाद बोल-बोलकर जलना शुरू किया।
अब जब दो साल से ज्यादा होने को आए तो पहली बार पंडित का दिमाग यह बात सिद्ध कर पाया कि जरूर थ्री इडिएट का उसपर असर रहा है। कुछ देर ऊकडू बैठकर पंडित ने इलाहाबादी ज्ञान बांचा। बाद प्रेशर बनते ही मुखिया को क्लिन चीट थमा दी। इसके बाद के इस निष्कर्ष पर कि ईष्या की प्रवृत्ति स्वाभाविक है और लाख नहीं चाहने पर करोड़ हो जाती है, मैं कमरे में और पांडे पाखाने में खुद ही समझा। आगे बुद्धिजीवी बहस होती, पहले ही एक गोपनीय व्हट्सअप मैसेज ने बताया- मुखिया ने ईष्या को अपने मन से भगाने की भूमिहार कसम खाई है। उसे अब इस बात का इलहाम हो गया है कि जलन के बाद आधे लीटर दूध में खर्च होने वाला पैसा, वैसी सेहत नहीं दे पा रहा है जैसे गांव के पट्टों की है। इसलिए ईष्या को ध्यान से भगाया जाए और दूध में खर्च होने वाला पैसा शादी के लिए बचाया जाए। अब पूरा यूपी-बिहार जान गया है पत्रकार की तनख्वाह 20 लाख का दहेज झटकने लायक नहीं होती।
अब जिन-जिन ने सुमित्रानंदन पंत को पढ़ा है वह जानना चाहते हैं कि मुखिया अपने मन से ईष्या को कैसे भगायेगा। चलिए पहले अब एक रिवर्स गैर मारते हैं। माना सामने पोरवाल की दुकान है।.....इंतजार करिए
नोट- किसी भी जिंदा और मरे हुए व्यक्ति से इन घटनाओं का कोई संबंध नहीं है। अगर आप किसी के साथ जोड़ना चाहे तो आजादी आपकी। मुखिया मात्र एक कल्पना है.. आप चाहे तो सच समझ सकते हैं।
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