नीड़ नहीं, नारी हूं मैं
स्वतंत्र नहीं!
पिंजर में हूं मैं
कितने युग बदले?
आज भी शासित
और पति की अनुगामिनी हूं मैं
अर्धांगनी हूं मैं
मेरा अर्धांग नहीं
अनुगमनीय नहीं
नर के बाद ही पुकारी जाने वाली
नारी हूं मैं।।
चूल्हे, चौखे से निकली
घूंघट में आंगन में बैठी
तो परिवार की प्यारी हूं मैं
मैंने नजरे मिलाई
घूंघट हटा सड़कों पर निकली
तो निर्लज्ज पुकारी हूं मैं
नीड़ नहीं नारी हूं, मैं।।
अभिशप्त है क्या जीवन?
मैं ही पिसती हूं
चक्की के दो पाटों में
शैशव में, कैशौर्य में
उसके बाद तो नियती बन जाती है
कहां हूं स्वतंत्र मैं
कब थी स्वतंत्र मैं
बंधन और सामाजिक रीति-रिवाज
क्या मेरी ही देह पर लागू होते हैं?
स्वतंत्र नहीं!
पिंजर में हूं मैं
कितने युग बदले?
आज भी शासित
और पति की अनुगामिनी हूं मैं
अर्धांगनी हूं मैं
मेरा अर्धांग नहीं
अनुगमनीय नहीं
नर के बाद ही पुकारी जाने वाली
नारी हूं मैं।।
चूल्हे, चौखे से निकली
घूंघट में आंगन में बैठी
तो परिवार की प्यारी हूं मैं
मैंने नजरे मिलाई
घूंघट हटा सड़कों पर निकली
तो निर्लज्ज पुकारी हूं मैं
नीड़ नहीं नारी हूं, मैं।।
अभिशप्त है क्या जीवन?
मैं ही पिसती हूं
चक्की के दो पाटों में
शैशव में, कैशौर्य में
उसके बाद तो नियती बन जाती है
कहां हूं स्वतंत्र मैं
कब थी स्वतंत्र मैं
बंधन और सामाजिक रीति-रिवाज
क्या मेरी ही देह पर लागू होते हैं?
मेरा प्रश्न है
मैं स्त्री हूं, क्या इसलिए?
मेरी भागीदारी है
मेरी साझेदारी है
मेरा पूरा सहयोग है
घर में, परिवार में, देश में
फिर चुड़ैल, कुलटा, कुलक्षणी, कलंकनी शब्द
मेरे लिए ही क्यों?
मेरी ही कोख से जन्म लेने वाली की नजरों में
मैं ही द्वीतिय श्रेणी की!
मां, मैं ही हूं
बलात्कृत भी।।
ललित फुलारा
साल 2011 में हमवतन वीकली न्यूज पेपर में प्रकाशित
मैं स्त्री हूं, क्या इसलिए?
मेरी भागीदारी है
मेरी साझेदारी है
मेरा पूरा सहयोग है
घर में, परिवार में, देश में
फिर चुड़ैल, कुलटा, कुलक्षणी, कलंकनी शब्द
मेरे लिए ही क्यों?
मेरी ही कोख से जन्म लेने वाली की नजरों में
मैं ही द्वीतिय श्रेणी की!
मां, मैं ही हूं
बलात्कृत भी।।
ललित फुलारा
साल 2011 में हमवतन वीकली न्यूज पेपर में प्रकाशित
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