'जिंदगी कैसी चल रही है?'
'बस कट रही है'।
ये दो ऐसी लाइने हैं जो अक्सर हमारी जुबान पर होती हैं। हम जीवन को जीते नहीं 'काटते' हैं, जैसे वो खेत की घास हो। 'काटने' से ही लगता है कि हम जीवन के प्रति कितने निराश और हताश हो चुके हैं, ऊब चुके हैं। क्या कभी इस सवाल का जवाब हम इस तरहे देंगे। 'बहुत बढ़िया चल रही है। आनंद आ रहा है। मौज हो रही है।' जिस दिन ऐसा बोलने लगेंगे 'जीवन सरल' होता चला जाएगा। ये जो काटना शब्द है अक्सर हमारा वास्ता इससे जवानी में पड़ता है। बचपन में हम जीवन को काटते नहीं बल्कि जीते हैं, मौजू की तरह। जैसे-जैसे बढ़े होते जाते हैं हमारे पास अपने लिए वक्त कम पड़ता जाता है और हम जीवन को काटने लगते हैं। इसलिए, जब जॉन जैडी कहते हैं- 'जीवन आसान है, हम इसे इतना कठिन क्यों बनाते हैं' तो यह बात हमें अंदर तक छू जाती है और इसपर सोचने को विवश हो जाते हैं।
...जैडी की तरह आप में से बहुतों को भी लगता होगा- 'जब मैं बच्चा था, सबकुछ आसान और मजेदार था।' क्यों था जब तक इसका जवाब खुद नहीं खोजेंगे सबकुछ था में ही चलता रहेगा। बहरहाल जॉन जैडी से ही जानिए हमनें इतने सरल जीवन को जटील कैसे बना दिया है?
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'जीवन सरल है।' यह एक ऐसा शब्द है जिसे मैं हर किसी को कहना चाहता हूं। जीवन बेहद सरल और मौजू है। इससे पहले मैंने कभी ऐसा नहीं सोचा था। जब मैं बैंकॉक में था, मुझे लगता था जिंदगी बहुत कठिन और जटील है।
मैं थाइलैंड के पूर्वोत्तर में एक बेहद गरीब परिवार में पैदा हुआ। जब मैं बच्चा था, सबकुछ आसान और मजेदार था। लेकिन टीवी के आते ही गांव में बहुत से लोग आ गए। उन्होंने कहा, 'तुम गरीब हो, तुम्हें सफल होना है। इसके लिए तुम्हें बैंकॉक जाना चाहिए।' मुझे बहुत बुरा लगा। मैंने सोचा, तो बैंकॉक जाना जरूर है। और जब मैं बैंकॉक गया तो वहां कुछ भी मजेदार नहीं था।
लोगों ने कहा, 'तुम्हें सीखना चाहिए। खूब पढ़ना चाहिए। कठिन परिश्रम करना चाहिए। तब जाकर तुम सफल हो सकते हो।' मैंने खूब मेहनत की। दिन में आठ घंटे काम किया। लेकिन, मुझे एक कप नूडल, कुछ तामा डिश और फ्राई चावल ऐसा ही कुछ खाने को मिला। जहां मैं रहता था वहां बहुत गंदा था। छोटा सा कमरा था, उसमें बहुत से लोग सोते थे। वहां बेहद गर्मी थी। इसके बाद मैंने खुद से प्रश्न करना शुरू किया।
अगर मैं खूब मेहनत कर रहा हूं, तो मेरी जिंदगी इतनी कठिन क्यों है?
कहीं जरूर कुछ गलत है।
मैंने काफी चीज़ों का उत्पादन किया लेकिन कुछ ज्यादा हासिल नहीं कर पाया। मैंने यूनिवर्सिटी में पढ़ने और सीखने की भी कोशिश की। यूनिवर्सिटी में पढ़ना बहुत कठिन है, क्योंकि यह बहुत बोरिंग है। मैंने जब यूनिवर्सिटी में सब्जेक्ट देखे, हर फैक्लटी को देखा, सबमें विनाशकारी ज्ञान था। मुझे लगा, यूनिवर्सिटी में मेरे लिए कोई उत्पादक (प्रोडक्टिव) ज्ञान नहीं है।
मैंने देखा अगर आप आर्टिटेक्ट और इंजीनियर बनना सीखते हैं तो ज्यादा बर्बाद होते हैं। ये लोग ज्यादा काम करते हैं, ज्यादा पहाड़ बर्बाद होते हैं। और चाओ फ्राया बेसिन की ज्यादा जमीन कंकरीट में तब्दील होती है। हम ज्यादा बर्बाद होते हैं। अगर हम कृषि योग्यता सीखते हैं तो इसका मतलब है, हम सीखते हैं कैसे खतों को, पानी को, जहरीला करें। हम सीखते हैं सबकुछ कैसे विनाश करें। हम जो करते हैं सबकुछ जटील है, बहुत कठिन है।
और हम ही इस सबकुछ को जटील बनाते हैं।
मुझे लगा, मैं यहां बैंकॉक में क्यों हूं?
जब मैं छोटा था, कोई भी दिन में आठ घंटे काम नहीं करता था। सभी दिन में दो घंटे और साल में 2 महीने काम करते थे। एक महीने धान का रोपण और दूसरे महीने उसकी कटाई। बाकि के 10 महीने लोगों के पास भरपूर वक्त होता था। यही वजह थी कि थाइलैंड में खूब त्यौहार होते थे। हर महीने त्यौहार होते थे, क्योंकि लोगों पर काफी खाली वक्त था। तब दिन में सभी लोग एक झपकी ले लिया करते थे। यहां तक की लाओस में भी लोग दोपहर के खाने के बाद थोड़ी देर झपकी लेते हैं। जब उठते हैं तो बातचीत करते हैं। वह एक दूसरे से पूछते हैं, आपका दामाद कैसा, पत्नी कैसी है, बहू कैसी है। लोगों पर काफी वक्त होता था। यह वक्त लोगों पर खुद के लिए होता था।
लोगों के पास खुद को समझने के लिए वक्त था। जब वह खुद को समझते थे तो यह जानते थे कि वह अपने जीवन में क्या चाहते हैं। वह खुशी, प्यार और जीवन का आनंद लेते थे। उनके जीवन में काफी खूबसूरती थी। इस खूबसूरती को वह कई तरकी से व्यक्त करते थे। कुछ लोग अपने चाकू के हत्थे की नक्काशी करते थे। खूबसूरत डलिया को अच्छी तरह से लहराते थे। लेकिन, अब कोई ऐसा नहीं करता है।
अब लोग हर जगह प्लास्टिक का इस्तेमाल करते हैं। इसलिए मुझे लगता है कहीं कुछ लगत हुआ है। मैं इस तरह की जिंदगी नहीं जी सकता हूं। इसलिए, मैंने यूनिवर्सिटी छोड़ दी और अपने घर वापस आ गया।
जब मैं घर वापस आया तो मैंने वैसे ही जिंदगी जीना शुरू कर दिया जैसे मैंने बचपन में देखा था। मैंने साल में दो महीने काम करना शुरू दिया। चार टन चावल उगाये। और मेरा पूरा परिवार, हम छह लोग सिर्फ साल में आधे टन से भी कम खा पाए। इसलिए हमने कुछ चावल बेच दिए।
इसके बाद मैंने दो तालाब खोदे। उनमें मछली पाली। अब मेरे पास सालभर खाने के लिए मछली थी। उसके बाद मैंने एक छोटा सा बागीचा बनाया। जो आधे से भी कम एकड़ में बना। हर दिन 15 मिनट मैंने इस बागीचे की देखभाल की और इसमें 30 तरह की सब्जियां उगाई। छह लोग इतनी सब्जियां तो नहीं खा सकते इसलिए मुझे
कुछ बाजार में बेचनी पड़ी। इससे मेरी कुछ कमाई हुई।
इसके बाद मुझे लगा मैं सात सालों तक बैंकॉक में क्यों था?
वहां इतना कठिन परिश्रम क्यों कर रहा था कि खाने के लिए भी पर्याप्त ना हो सके। लेकिन यहां साल में दो महीने काम करके और हर दिन 15 मिनट काम करके में छह लोगों को आसानी से पाल रहा हूं। इससे आसान और क्या है?
इससे पहले मैं सोचता था मेरी तरह मूर्ख लोग जो स्कूल में अच्छा ग्रेड नहीं ला पाते, उनके पास अपना घर नहीं हो सकता। मुझसे ज्यादा चालाक लोग ही हर साल स्कूल में अच्छे नंबर लाते हैं, और अच्छी नौकरी पाते हैं। उन लोगों को अपने घर के लिए 30 साल से भी ज्यादा काम करना पड़ता है।
जो यूनिवर्सिटी में भी नहीं पढ़ पाया उसके पास कैसे अपना घर होगा। इसके बाद मैंने मिट्टी की इमारत बनाना शुरू कर दिया। यह बेहद आसान है। मैंने दिन में दो घंटे, सुबह पांच बजे से सात बजे तक काम करना शुरू किया और इस तरह तीन महीने में खुद का घर बना लिया।
अनुवाद- ललित फुलारा
http://www.singjupost.com/life-easy-make-hard-asks-jon-jandai-transcript/
https://www.youtube.com/watch?v=21j_OCNLuYg
'बस कट रही है'।
ये दो ऐसी लाइने हैं जो अक्सर हमारी जुबान पर होती हैं। हम जीवन को जीते नहीं 'काटते' हैं, जैसे वो खेत की घास हो। 'काटने' से ही लगता है कि हम जीवन के प्रति कितने निराश और हताश हो चुके हैं, ऊब चुके हैं। क्या कभी इस सवाल का जवाब हम इस तरहे देंगे। 'बहुत बढ़िया चल रही है। आनंद आ रहा है। मौज हो रही है।' जिस दिन ऐसा बोलने लगेंगे 'जीवन सरल' होता चला जाएगा। ये जो काटना शब्द है अक्सर हमारा वास्ता इससे जवानी में पड़ता है। बचपन में हम जीवन को काटते नहीं बल्कि जीते हैं, मौजू की तरह। जैसे-जैसे बढ़े होते जाते हैं हमारे पास अपने लिए वक्त कम पड़ता जाता है और हम जीवन को काटने लगते हैं। इसलिए, जब जॉन जैडी कहते हैं- 'जीवन आसान है, हम इसे इतना कठिन क्यों बनाते हैं' तो यह बात हमें अंदर तक छू जाती है और इसपर सोचने को विवश हो जाते हैं।
...जैडी की तरह आप में से बहुतों को भी लगता होगा- 'जब मैं बच्चा था, सबकुछ आसान और मजेदार था।' क्यों था जब तक इसका जवाब खुद नहीं खोजेंगे सबकुछ था में ही चलता रहेगा। बहरहाल जॉन जैडी से ही जानिए हमनें इतने सरल जीवन को जटील कैसे बना दिया है?
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'जीवन सरल है।' यह एक ऐसा शब्द है जिसे मैं हर किसी को कहना चाहता हूं। जीवन बेहद सरल और मौजू है। इससे पहले मैंने कभी ऐसा नहीं सोचा था। जब मैं बैंकॉक में था, मुझे लगता था जिंदगी बहुत कठिन और जटील है।
मैं थाइलैंड के पूर्वोत्तर में एक बेहद गरीब परिवार में पैदा हुआ। जब मैं बच्चा था, सबकुछ आसान और मजेदार था। लेकिन टीवी के आते ही गांव में बहुत से लोग आ गए। उन्होंने कहा, 'तुम गरीब हो, तुम्हें सफल होना है। इसके लिए तुम्हें बैंकॉक जाना चाहिए।' मुझे बहुत बुरा लगा। मैंने सोचा, तो बैंकॉक जाना जरूर है। और जब मैं बैंकॉक गया तो वहां कुछ भी मजेदार नहीं था।
लोगों ने कहा, 'तुम्हें सीखना चाहिए। खूब पढ़ना चाहिए। कठिन परिश्रम करना चाहिए। तब जाकर तुम सफल हो सकते हो।' मैंने खूब मेहनत की। दिन में आठ घंटे काम किया। लेकिन, मुझे एक कप नूडल, कुछ तामा डिश और फ्राई चावल ऐसा ही कुछ खाने को मिला। जहां मैं रहता था वहां बहुत गंदा था। छोटा सा कमरा था, उसमें बहुत से लोग सोते थे। वहां बेहद गर्मी थी। इसके बाद मैंने खुद से प्रश्न करना शुरू किया।
अगर मैं खूब मेहनत कर रहा हूं, तो मेरी जिंदगी इतनी कठिन क्यों है?
कहीं जरूर कुछ गलत है।
मैंने काफी चीज़ों का उत्पादन किया लेकिन कुछ ज्यादा हासिल नहीं कर पाया। मैंने यूनिवर्सिटी में पढ़ने और सीखने की भी कोशिश की। यूनिवर्सिटी में पढ़ना बहुत कठिन है, क्योंकि यह बहुत बोरिंग है। मैंने जब यूनिवर्सिटी में सब्जेक्ट देखे, हर फैक्लटी को देखा, सबमें विनाशकारी ज्ञान था। मुझे लगा, यूनिवर्सिटी में मेरे लिए कोई उत्पादक (प्रोडक्टिव) ज्ञान नहीं है।
मैंने देखा अगर आप आर्टिटेक्ट और इंजीनियर बनना सीखते हैं तो ज्यादा बर्बाद होते हैं। ये लोग ज्यादा काम करते हैं, ज्यादा पहाड़ बर्बाद होते हैं। और चाओ फ्राया बेसिन की ज्यादा जमीन कंकरीट में तब्दील होती है। हम ज्यादा बर्बाद होते हैं। अगर हम कृषि योग्यता सीखते हैं तो इसका मतलब है, हम सीखते हैं कैसे खतों को, पानी को, जहरीला करें। हम सीखते हैं सबकुछ कैसे विनाश करें। हम जो करते हैं सबकुछ जटील है, बहुत कठिन है।
और हम ही इस सबकुछ को जटील बनाते हैं।
मुझे लगा, मैं यहां बैंकॉक में क्यों हूं?
जब मैं छोटा था, कोई भी दिन में आठ घंटे काम नहीं करता था। सभी दिन में दो घंटे और साल में 2 महीने काम करते थे। एक महीने धान का रोपण और दूसरे महीने उसकी कटाई। बाकि के 10 महीने लोगों के पास भरपूर वक्त होता था। यही वजह थी कि थाइलैंड में खूब त्यौहार होते थे। हर महीने त्यौहार होते थे, क्योंकि लोगों पर काफी खाली वक्त था। तब दिन में सभी लोग एक झपकी ले लिया करते थे। यहां तक की लाओस में भी लोग दोपहर के खाने के बाद थोड़ी देर झपकी लेते हैं। जब उठते हैं तो बातचीत करते हैं। वह एक दूसरे से पूछते हैं, आपका दामाद कैसा, पत्नी कैसी है, बहू कैसी है। लोगों पर काफी वक्त होता था। यह वक्त लोगों पर खुद के लिए होता था।
लोगों के पास खुद को समझने के लिए वक्त था। जब वह खुद को समझते थे तो यह जानते थे कि वह अपने जीवन में क्या चाहते हैं। वह खुशी, प्यार और जीवन का आनंद लेते थे। उनके जीवन में काफी खूबसूरती थी। इस खूबसूरती को वह कई तरकी से व्यक्त करते थे। कुछ लोग अपने चाकू के हत्थे की नक्काशी करते थे। खूबसूरत डलिया को अच्छी तरह से लहराते थे। लेकिन, अब कोई ऐसा नहीं करता है।
अब लोग हर जगह प्लास्टिक का इस्तेमाल करते हैं। इसलिए मुझे लगता है कहीं कुछ लगत हुआ है। मैं इस तरह की जिंदगी नहीं जी सकता हूं। इसलिए, मैंने यूनिवर्सिटी छोड़ दी और अपने घर वापस आ गया।
जब मैं घर वापस आया तो मैंने वैसे ही जिंदगी जीना शुरू कर दिया जैसे मैंने बचपन में देखा था। मैंने साल में दो महीने काम करना शुरू दिया। चार टन चावल उगाये। और मेरा पूरा परिवार, हम छह लोग सिर्फ साल में आधे टन से भी कम खा पाए। इसलिए हमने कुछ चावल बेच दिए।
इसके बाद मैंने दो तालाब खोदे। उनमें मछली पाली। अब मेरे पास सालभर खाने के लिए मछली थी। उसके बाद मैंने एक छोटा सा बागीचा बनाया। जो आधे से भी कम एकड़ में बना। हर दिन 15 मिनट मैंने इस बागीचे की देखभाल की और इसमें 30 तरह की सब्जियां उगाई। छह लोग इतनी सब्जियां तो नहीं खा सकते इसलिए मुझे
कुछ बाजार में बेचनी पड़ी। इससे मेरी कुछ कमाई हुई।
इसके बाद मुझे लगा मैं सात सालों तक बैंकॉक में क्यों था?
वहां इतना कठिन परिश्रम क्यों कर रहा था कि खाने के लिए भी पर्याप्त ना हो सके। लेकिन यहां साल में दो महीने काम करके और हर दिन 15 मिनट काम करके में छह लोगों को आसानी से पाल रहा हूं। इससे आसान और क्या है?
इससे पहले मैं सोचता था मेरी तरह मूर्ख लोग जो स्कूल में अच्छा ग्रेड नहीं ला पाते, उनके पास अपना घर नहीं हो सकता। मुझसे ज्यादा चालाक लोग ही हर साल स्कूल में अच्छे नंबर लाते हैं, और अच्छी नौकरी पाते हैं। उन लोगों को अपने घर के लिए 30 साल से भी ज्यादा काम करना पड़ता है।
जो यूनिवर्सिटी में भी नहीं पढ़ पाया उसके पास कैसे अपना घर होगा। इसके बाद मैंने मिट्टी की इमारत बनाना शुरू कर दिया। यह बेहद आसान है। मैंने दिन में दो घंटे, सुबह पांच बजे से सात बजे तक काम करना शुरू किया और इस तरह तीन महीने में खुद का घर बना लिया।
अनुवाद- ललित फुलारा
http://www.singjupost.com/life-easy-make-hard-asks-jon-jandai-transcript/
https://www.youtube.com/watch?v=21j_OCNLuYg
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