नाम-पी वेट्री भूपथी
जन्म- 30 अक्टूबर1979 (अंडमान निकोबार), मूलत: कर्नाटक के कुंभकोणम के रहने वाले हैं
पुरस्कार- 2006 में तालमणी, 2015 में ताल वाद्य गुरु तिलगर, 2015 ताल वाद्य विटगर पुरस्कार
संगीत- अमरीकी और ग्रीस फिल्म फेस्टिवल में सराही गई डॉक्यूमेंट्री एको धर्म।
कार्यरत- राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के संगीत विभाग में तालवादक
बैंड-रुद्राक्षम
प्रस्तुतियां- संगीत नाटक अकादमी से लेकर चीन, मलेशिया और फिलिपिंस
वेट्री भूमथी नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के संगीत विभाग में तालवादक हैं। पिता व कर्नाटक के प्रसिद्ध मृदंगम उस्ताद प्रेम कुमार से पांच साल की उम्र में संगीत की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा हासिल की। 10 साल की उम्र में सीसीआरटी और 18 साल की उम्र में एचआरडी स्कॉलरशिप मिली। पद्मभूषण केएन पणिक्कर, भास्कर चंद्रा और काजल घोष के साथ काम कर चुके हैं। रुद्राक्षम नाम का बैंड चलाते हैं। उज्बेकिस्तान के निर्देशक ओबिया कुली के साथ शेक्सपियर के किंग लेयर, पर्शियन और केन नाटकों में संगीत दे चुके हैं। दिल्ली के अरविंदो कॉलेज से बीकॉम ऑनर्स है। रेडियो और दूरदर्शन के बी ग्रेड आर्टिस्ट हैं।
वेट्री से विस्तार से की गई बातचीत
थिएटर में संगीत देना, स्टेज परफोर्मेंस करना एकदम भिन्न है। नाटकों में संगीत देने के लिए बेहद धैर्य की जरूरत होती है। कई बार तो डेढ़ घंटे के नाटक में संवाद के बीच सिर्फ दो जगह धम्म देना होता है, तो खुद ही समझ सकते हैं कितना सब्र चाहिए होगा। थिएटर में सबसे महत्वपूर्ण स्क्रिप्ट है। उसके बाद सेट, लाइट और म्यूजिक, जो दर्शकों को बांधता है। पिछले 15 सालों में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के कई नाटकों में संगीत दे चुका हूं। सबसे बेहतरीन अनुभव उज्बेकिस्तान के निर्देशक ओबिया कुली के साथ काम करने के दौरान हुआ।
जब वो एनएसडी में नाटक लेकर आए तो उन्होंने मुझे बुलाया। वो रूसी बोल रहे थे और मैं अंग्रेजी। हम दोनों एक-दूसरे की भाषा नहीं जानता थे। मैंने उनके साथ तीन नाटकों में संगीत दिया। यह एकदम जुदा एहसास था। नाटक को डायरेक्ट करते हुए जब कोई निर्देशक कहीं फंस जाता है, तो म्यूजिशियन दिमाग ही उसे उस सीन से बाहर निकालता है। ऐसे में जिम्मेदारी और बढ़ जाती है।
ओबिया कुली के केन नाटक में म्यूजिक देना था। उन्होंने शर्त रखी थी कि इस बार चमड़े की जगह धातु के वाद्ययंत्रों से साउंड निकालना होगा। यह पहली बार था जब मैं खुद के ही काम से हैरान हो गया। मैंने एनएसडी में ही पड़े टिन के डिब्बे और रॉड को इकट्ठा किया। अभिमंच में रिहर्सल के दौरान वहां पड़े प्लास्टिक को भी इसमें जोड़ लिया। ड्रम स्टिल से बना था। जब दर्शकों ने नाटक का म्यूजिक सुना तो वो मंत्रमुग्ध थे। नाटक के बाद जब कई दर्शक बैक स्टेज आए तो हैरान थे, सारे वाद्यंत्र कबाड़ से बनाए गए थे। हालांकि मेरे लिए तो वो वाद्ययंत्र ही थे।
एक वाकया सुनाता हूं। एक बार काम के दौरान, ओबिया कुली इरिटेड हो गए और मुझे भी गुस्सा आ गया। गुस्से में ही मैंने एल्यूमिनियम के डिब्बे पर लात मारी और एकदम वही ध्वनी निकल आई जो ओबिया कुली को चाहिए थी। वो खुश हो गए और बोले अब तो लात मार कर ही यह ध्वनी निकालनी होगी। बाद में मुझे एहसास हुआ कि यह टिन का डिब्बा तो मेरे लिए पूजनीय है, यह मेरा वाद्ययंत्र है, मैं इसमें कैसे लात मार सकता हूं। मैंने उनसे कहा, हमारी संस्कृति में वाद्ययंत्रों को पैर नहीं मारते। इसलिए मैं यही साउंड, दूसरे तरह से निकालूंगा। और उसके बाद मैंने स्टिक के जरिए वहीं साउंड निकाला। ओबिया कुली के तीनों नाटकों में दिए गए म्यूजिक को काफी सराहा गया। एनएसडी पूर्व निर्देशिका अनुराधा कपूर से भी काफी तारीफ मिली। मैं मृदंगम के अलावा भी चार-पांच वाद्ययंत्रों को बजाता हूं। मृदंगम में जो बजाता हूं, उसके बोल सुनाता भी हूं। दर्शकों की ताली से बड़ा कोई पुरस्कार नहीं है।
थिएटर म्यूजिक भी क्लासिकल म्यूजिक का ही विस्तार है। शास्त्रीय संगीत चाहे हिंदुस्तानी हो या कर्नाटिक उसे सीखना बेहद जरूरी है। रियाज नहीं किया गया तो संगीत आपको छोड़ देगा, चाहे आप संगीत को छोड़ ना छोड़े। हमारी छह-सात पुश्ते कर्नाटक शैली गा रही हैं। मैं मृंदगम में जो बजाता हूं, उसको सुनाता भी हूं। इसे कनुल्कलम कहते हैं। मृंदगम भारतीय क्लासिक वाद्ययंत्रों में सबसे पुराना है। माना जाता है, पहली ध्वनी शिव के डमरू से पैदा हुई। आप किसी भी भगवान की मूर्ति देखेंगे, तो वहां भी उनके हाथों में वाद्ययंत्र देखेंगे। गणेश जी के हाथ में भी आपने मृदंगम देखा होगा। संगीत वो है जो आपके इंद्रियो को जागृत कर दे। आपको खुश कर दे। आम स्तर पर इससे ज्यादा अच्छी परीभाषा नहीं हो सकती।
सबसे बड़ा पुरस्कार दर्शकों की ताली है। क्लालिसक के साथ कंटेमपरी म्यूजिक भी दिया है। छह सात साल की उम्र में करोल बाग में पहली स्टेज प्रस्तुती दी। यह बात 80 के दशक की है। बचपन में ही बहुत कॉम्पटिशन जीता। 18 साल में कॉलेज में बीकॉम के फस्ट्र ईयर में एचआरडी स्कॉलरशिप मिली। यह मृदंगम के लिए दिया गया। यह पुरस्कार 18 साल से 25 साल तक की उम्र तक दी जाती है और सम्मानित स्कॉलरशिप है। 22साल की उम्र में एनएनसडी ज्वॉइन की। पोस्ट निकली हुई थी और फॉर्म भर दिया और 2002 से संगीत विभाग से जुड़ गया। बी ग्रेट आर्टिस्ट हूं, रेडियो और दूरदर्शन का। एनएसडी आने के बाद ही एमकॉम खत्म किया। म्यूजिक को प्रोफेशन बनाना आईआईटी और आआईएम क्रेक करने से कम नहीं है। आप कितने डॉक्टर हैं भारत में उन्हें नहीं गिन सकते, लेकिन कितने म्यूजिशिन है गिन सकते हैं। एक बार स्टेज मिलने के बाद खुद को साबित करना जरूरी है।
10.6.2016 के राजस्थान पत्रिका के सृजन पेज पर प्रकाशित
जन्म- 30 अक्टूबर1979 (अंडमान निकोबार), मूलत: कर्नाटक के कुंभकोणम के रहने वाले हैं
पुरस्कार- 2006 में तालमणी, 2015 में ताल वाद्य गुरु तिलगर, 2015 ताल वाद्य विटगर पुरस्कार
संगीत- अमरीकी और ग्रीस फिल्म फेस्टिवल में सराही गई डॉक्यूमेंट्री एको धर्म।
कार्यरत- राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के संगीत विभाग में तालवादक
बैंड-रुद्राक्षम
प्रस्तुतियां- संगीत नाटक अकादमी से लेकर चीन, मलेशिया और फिलिपिंस
वेट्री भूमथी नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के संगीत विभाग में तालवादक हैं। पिता व कर्नाटक के प्रसिद्ध मृदंगम उस्ताद प्रेम कुमार से पांच साल की उम्र में संगीत की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा हासिल की। 10 साल की उम्र में सीसीआरटी और 18 साल की उम्र में एचआरडी स्कॉलरशिप मिली। पद्मभूषण केएन पणिक्कर, भास्कर चंद्रा और काजल घोष के साथ काम कर चुके हैं। रुद्राक्षम नाम का बैंड चलाते हैं। उज्बेकिस्तान के निर्देशक ओबिया कुली के साथ शेक्सपियर के किंग लेयर, पर्शियन और केन नाटकों में संगीत दे चुके हैं। दिल्ली के अरविंदो कॉलेज से बीकॉम ऑनर्स है। रेडियो और दूरदर्शन के बी ग्रेड आर्टिस्ट हैं।
वेट्री से विस्तार से की गई बातचीत
थिएटर में संगीत देना, स्टेज परफोर्मेंस करना एकदम भिन्न है। नाटकों में संगीत देने के लिए बेहद धैर्य की जरूरत होती है। कई बार तो डेढ़ घंटे के नाटक में संवाद के बीच सिर्फ दो जगह धम्म देना होता है, तो खुद ही समझ सकते हैं कितना सब्र चाहिए होगा। थिएटर में सबसे महत्वपूर्ण स्क्रिप्ट है। उसके बाद सेट, लाइट और म्यूजिक, जो दर्शकों को बांधता है। पिछले 15 सालों में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के कई नाटकों में संगीत दे चुका हूं। सबसे बेहतरीन अनुभव उज्बेकिस्तान के निर्देशक ओबिया कुली के साथ काम करने के दौरान हुआ।
जब वो एनएसडी में नाटक लेकर आए तो उन्होंने मुझे बुलाया। वो रूसी बोल रहे थे और मैं अंग्रेजी। हम दोनों एक-दूसरे की भाषा नहीं जानता थे। मैंने उनके साथ तीन नाटकों में संगीत दिया। यह एकदम जुदा एहसास था। नाटक को डायरेक्ट करते हुए जब कोई निर्देशक कहीं फंस जाता है, तो म्यूजिशियन दिमाग ही उसे उस सीन से बाहर निकालता है। ऐसे में जिम्मेदारी और बढ़ जाती है।
ओबिया कुली के केन नाटक में म्यूजिक देना था। उन्होंने शर्त रखी थी कि इस बार चमड़े की जगह धातु के वाद्ययंत्रों से साउंड निकालना होगा। यह पहली बार था जब मैं खुद के ही काम से हैरान हो गया। मैंने एनएसडी में ही पड़े टिन के डिब्बे और रॉड को इकट्ठा किया। अभिमंच में रिहर्सल के दौरान वहां पड़े प्लास्टिक को भी इसमें जोड़ लिया। ड्रम स्टिल से बना था। जब दर्शकों ने नाटक का म्यूजिक सुना तो वो मंत्रमुग्ध थे। नाटक के बाद जब कई दर्शक बैक स्टेज आए तो हैरान थे, सारे वाद्यंत्र कबाड़ से बनाए गए थे। हालांकि मेरे लिए तो वो वाद्ययंत्र ही थे।
एक वाकया सुनाता हूं। एक बार काम के दौरान, ओबिया कुली इरिटेड हो गए और मुझे भी गुस्सा आ गया। गुस्से में ही मैंने एल्यूमिनियम के डिब्बे पर लात मारी और एकदम वही ध्वनी निकल आई जो ओबिया कुली को चाहिए थी। वो खुश हो गए और बोले अब तो लात मार कर ही यह ध्वनी निकालनी होगी। बाद में मुझे एहसास हुआ कि यह टिन का डिब्बा तो मेरे लिए पूजनीय है, यह मेरा वाद्ययंत्र है, मैं इसमें कैसे लात मार सकता हूं। मैंने उनसे कहा, हमारी संस्कृति में वाद्ययंत्रों को पैर नहीं मारते। इसलिए मैं यही साउंड, दूसरे तरह से निकालूंगा। और उसके बाद मैंने स्टिक के जरिए वहीं साउंड निकाला। ओबिया कुली के तीनों नाटकों में दिए गए म्यूजिक को काफी सराहा गया। एनएसडी पूर्व निर्देशिका अनुराधा कपूर से भी काफी तारीफ मिली। मैं मृदंगम के अलावा भी चार-पांच वाद्ययंत्रों को बजाता हूं। मृदंगम में जो बजाता हूं, उसके बोल सुनाता भी हूं। दर्शकों की ताली से बड़ा कोई पुरस्कार नहीं है।
थिएटर म्यूजिक भी क्लासिकल म्यूजिक का ही विस्तार है। शास्त्रीय संगीत चाहे हिंदुस्तानी हो या कर्नाटिक उसे सीखना बेहद जरूरी है। रियाज नहीं किया गया तो संगीत आपको छोड़ देगा, चाहे आप संगीत को छोड़ ना छोड़े। हमारी छह-सात पुश्ते कर्नाटक शैली गा रही हैं। मैं मृंदगम में जो बजाता हूं, उसको सुनाता भी हूं। इसे कनुल्कलम कहते हैं। मृंदगम भारतीय क्लासिक वाद्ययंत्रों में सबसे पुराना है। माना जाता है, पहली ध्वनी शिव के डमरू से पैदा हुई। आप किसी भी भगवान की मूर्ति देखेंगे, तो वहां भी उनके हाथों में वाद्ययंत्र देखेंगे। गणेश जी के हाथ में भी आपने मृदंगम देखा होगा। संगीत वो है जो आपके इंद्रियो को जागृत कर दे। आपको खुश कर दे। आम स्तर पर इससे ज्यादा अच्छी परीभाषा नहीं हो सकती।
सबसे बड़ा पुरस्कार दर्शकों की ताली है। क्लालिसक के साथ कंटेमपरी म्यूजिक भी दिया है। छह सात साल की उम्र में करोल बाग में पहली स्टेज प्रस्तुती दी। यह बात 80 के दशक की है। बचपन में ही बहुत कॉम्पटिशन जीता। 18 साल में कॉलेज में बीकॉम के फस्ट्र ईयर में एचआरडी स्कॉलरशिप मिली। यह मृदंगम के लिए दिया गया। यह पुरस्कार 18 साल से 25 साल तक की उम्र तक दी जाती है और सम्मानित स्कॉलरशिप है। 22साल की उम्र में एनएनसडी ज्वॉइन की। पोस्ट निकली हुई थी और फॉर्म भर दिया और 2002 से संगीत विभाग से जुड़ गया। बी ग्रेट आर्टिस्ट हूं, रेडियो और दूरदर्शन का। एनएसडी आने के बाद ही एमकॉम खत्म किया। म्यूजिक को प्रोफेशन बनाना आईआईटी और आआईएम क्रेक करने से कम नहीं है। आप कितने डॉक्टर हैं भारत में उन्हें नहीं गिन सकते, लेकिन कितने म्यूजिशिन है गिन सकते हैं। एक बार स्टेज मिलने के बाद खुद को साबित करना जरूरी है।
10.6.2016 के राजस्थान पत्रिका के सृजन पेज पर प्रकाशित
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें