श्रीमान नरेंद्र मोदी जी
नमस्कार
आप भारतीय जनमानस के 'प्रधान सेवक' हैं. सेवा करना आपका कर्तव्य है. तीन सालों से आप देश सेवा में तल्लीन हैं. नोटबंदी और जीएसटी आपकी ख्याति युग-युगांतर तक अमर रखेगी. दुनियाभर के कई देश, आपकी चरणों की रज वंदना करते रहेंगे. विश्व के सबसे शक्तिशाली मुल्क अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप, आपके दोस्त हैं. ओबामा से आपकी इतनी गहरी आत्मीयता है कि वो अक्सर आपको फोन करते रहते हैं.
प्रधानमंत्री जी. मैं आपका प्रशंसक हूं- पर 'भक्त' कहलाया जाता हूं. जब आप सत्ता में आए थे, मेरी कई शामें आपकी तारीफों के पुल बांधने में गुजरी. मैं आपका मुफ्त प्रचारक था. गली-मुहल्ले, दूध की डेयरी,चाय की दुकान और ऑफिस- हर जगह, मैं आपका 'मुखपत्र' बना घूमता था. मैंने अपने कई अजीज लोगों से सिर्फ इसलिए नाता तोड़ दिया क्योंकि, मैं उनके मुख से आपके विरोध में एक शब्द, भी नहीं सुन सकता था. एक बार टीवी में आपकी पत्नी के ऊपर एक कार्यक्रम देखकर जब मेरी पत्नी ने आपके पतित्व पर सवाल उठाया, तो मेरा हाथ उठते-उठते रह गया और गुस्सा टीवी के स्क्रीन पर उतरा.
उसके बाद मैंने पत्नी को समझाया, प्रधान सेवक ने पत्नी छोड़ी नहीं, बल्कि देशसेवा में परित्याग किया है. वो भी बड़ी तुनक-मिजाज है, तो बोल पड़ी आप मेरा मत कर देना. मेरा गुस्सा और बढ़ गया- एक सप्ताह तक मैंने उससे बात नहीं की.
मेरा बेटा, जो कि 21-22 साल का हो गया है. वो आपका घोर विरोधी बनता जा रहा है. पहले कम था. पिछले एक साल से और ज्यादा हो गया है. अक्सर घर में राजनीतिक विषयों पर बातचीत के दौरान, मेरी और उसकी तनातनी हो जाया करती है. वो आपका अंधी-भीड़ का राजा करार देता है. तानाशाह बुलाता है. जब जुनैद मारा गया- वो बेहद गुस्से में था. उसकी आंखें लाल थी. उसे पड़ोसी सुलेमान और उनके बच्चों की बेहद चिंता सता रही थी. इससे पहले भी अखलाक, पहलू और अलीमुद्दीन मारा गया था तब भी वो क्रोधित था. उसे अपने मुस्लिम दोस्तों की फिक्र रहती है. उसके चेहरे पर इनदिनों अजीब- सी चिंता बरकरार है. हर वक्त डरा-डरा सा रहता है.
उस दिन फोन पर किसी से कह रहा था- हम विकास के साथ ही विनाश की तरफ बढ़ रहे हैं. इंसानियत सड़कों पर दम तोड़ रही है. आदमी आदमखोर हो गया है. कानून असहाय है- इंसान के हाथ इंसानी खून लग गया है. वो दिन दूर नहीं जब हम चुन-चुन कर मारे जाएंगे. सबसे पहले वो हमदर्दों का खात्मा करेंगे. जाति-धर्म पूछकर वार होगा. कभी सड़क, कभी घर और कभी ऑफिस- वो आएंगे. उनके गले में भगवा गमछा होगा. जुबां पर जय श्रीराम और गोमाता होगी. और हम हथियारों के युग में घिरे होकर गाजर-मूली की तरह कट रहे होंगे.
प्रधानमंत्री जी, उसकी इन बातों ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया. एकाएक मैं समझ गया. मेरा बेटा समझदार हो गया है. उसे चिंता है आज की और आने वाले कल की. उसे चिंता है- इंसानियत की. वो अपने आस-पास की घटनाओं से व्यथित है. अंदर ही अंदर घुट रहा है.
उस रात में सो नहीं सका. अगली सुबह अखबार किनारे कर, उसके बगल में जा बैठा. वो भीड़ में बंधी एक औरत का वीडियो देख रहा था. वो असहाय थी- होंठ से खून बह रहा था. बेलगाम भीड़ मारे जा रही थी. उसके बाद उसने एक दूसरा वीडियो खोला- एक आदमी सड़क पर चुपचाप लोगों से घिरा था. उसकी गर्दन बेलगाम भीड़ के हाथों में थी. उसने मुझे बताया पापा, ये अलीमुद्दीन है. एक दूसरी तस्वीर दिखाई- एक बच्चा खून से सना था. उसने कहा ये जुनैद है. मैं सहम गया. खौफ से भर गया. मुझे लगा मेरा बेटा सही कह रहा है- हम किस तरफ जा रहे हैं. विकसित सभ्यताएं युद्ध की बली, चढ़ गई. पर मैं तो आपका 'भक्त' हूं. क्या करता- उसे समझाया और आपका वो संदेश बताया जो आपने साबरमती में दिया था. पर वो तो आपका विरोधी बनता जा रहा है. बोल उठा- प्रधानमंत्री अगर किसी जुनैद, किसी अखलाक, किसी अलीमुद्दीन के परिवार को एक बार गले लगा लेते तो क्या पता, कुछ बदल जाता.
आपका
अनाम
नमस्कार
आप भारतीय जनमानस के 'प्रधान सेवक' हैं. सेवा करना आपका कर्तव्य है. तीन सालों से आप देश सेवा में तल्लीन हैं. नोटबंदी और जीएसटी आपकी ख्याति युग-युगांतर तक अमर रखेगी. दुनियाभर के कई देश, आपकी चरणों की रज वंदना करते रहेंगे. विश्व के सबसे शक्तिशाली मुल्क अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप, आपके दोस्त हैं. ओबामा से आपकी इतनी गहरी आत्मीयता है कि वो अक्सर आपको फोन करते रहते हैं.
प्रधानमंत्री जी. मैं आपका प्रशंसक हूं- पर 'भक्त' कहलाया जाता हूं. जब आप सत्ता में आए थे, मेरी कई शामें आपकी तारीफों के पुल बांधने में गुजरी. मैं आपका मुफ्त प्रचारक था. गली-मुहल्ले, दूध की डेयरी,चाय की दुकान और ऑफिस- हर जगह, मैं आपका 'मुखपत्र' बना घूमता था. मैंने अपने कई अजीज लोगों से सिर्फ इसलिए नाता तोड़ दिया क्योंकि, मैं उनके मुख से आपके विरोध में एक शब्द, भी नहीं सुन सकता था. एक बार टीवी में आपकी पत्नी के ऊपर एक कार्यक्रम देखकर जब मेरी पत्नी ने आपके पतित्व पर सवाल उठाया, तो मेरा हाथ उठते-उठते रह गया और गुस्सा टीवी के स्क्रीन पर उतरा.
उसके बाद मैंने पत्नी को समझाया, प्रधान सेवक ने पत्नी छोड़ी नहीं, बल्कि देशसेवा में परित्याग किया है. वो भी बड़ी तुनक-मिजाज है, तो बोल पड़ी आप मेरा मत कर देना. मेरा गुस्सा और बढ़ गया- एक सप्ताह तक मैंने उससे बात नहीं की.
मेरा बेटा, जो कि 21-22 साल का हो गया है. वो आपका घोर विरोधी बनता जा रहा है. पहले कम था. पिछले एक साल से और ज्यादा हो गया है. अक्सर घर में राजनीतिक विषयों पर बातचीत के दौरान, मेरी और उसकी तनातनी हो जाया करती है. वो आपका अंधी-भीड़ का राजा करार देता है. तानाशाह बुलाता है. जब जुनैद मारा गया- वो बेहद गुस्से में था. उसकी आंखें लाल थी. उसे पड़ोसी सुलेमान और उनके बच्चों की बेहद चिंता सता रही थी. इससे पहले भी अखलाक, पहलू और अलीमुद्दीन मारा गया था तब भी वो क्रोधित था. उसे अपने मुस्लिम दोस्तों की फिक्र रहती है. उसके चेहरे पर इनदिनों अजीब- सी चिंता बरकरार है. हर वक्त डरा-डरा सा रहता है.
उस दिन फोन पर किसी से कह रहा था- हम विकास के साथ ही विनाश की तरफ बढ़ रहे हैं. इंसानियत सड़कों पर दम तोड़ रही है. आदमी आदमखोर हो गया है. कानून असहाय है- इंसान के हाथ इंसानी खून लग गया है. वो दिन दूर नहीं जब हम चुन-चुन कर मारे जाएंगे. सबसे पहले वो हमदर्दों का खात्मा करेंगे. जाति-धर्म पूछकर वार होगा. कभी सड़क, कभी घर और कभी ऑफिस- वो आएंगे. उनके गले में भगवा गमछा होगा. जुबां पर जय श्रीराम और गोमाता होगी. और हम हथियारों के युग में घिरे होकर गाजर-मूली की तरह कट रहे होंगे.
प्रधानमंत्री जी, उसकी इन बातों ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया. एकाएक मैं समझ गया. मेरा बेटा समझदार हो गया है. उसे चिंता है आज की और आने वाले कल की. उसे चिंता है- इंसानियत की. वो अपने आस-पास की घटनाओं से व्यथित है. अंदर ही अंदर घुट रहा है.
उस रात में सो नहीं सका. अगली सुबह अखबार किनारे कर, उसके बगल में जा बैठा. वो भीड़ में बंधी एक औरत का वीडियो देख रहा था. वो असहाय थी- होंठ से खून बह रहा था. बेलगाम भीड़ मारे जा रही थी. उसके बाद उसने एक दूसरा वीडियो खोला- एक आदमी सड़क पर चुपचाप लोगों से घिरा था. उसकी गर्दन बेलगाम भीड़ के हाथों में थी. उसने मुझे बताया पापा, ये अलीमुद्दीन है. एक दूसरी तस्वीर दिखाई- एक बच्चा खून से सना था. उसने कहा ये जुनैद है. मैं सहम गया. खौफ से भर गया. मुझे लगा मेरा बेटा सही कह रहा है- हम किस तरफ जा रहे हैं. विकसित सभ्यताएं युद्ध की बली, चढ़ गई. पर मैं तो आपका 'भक्त' हूं. क्या करता- उसे समझाया और आपका वो संदेश बताया जो आपने साबरमती में दिया था. पर वो तो आपका विरोधी बनता जा रहा है. बोल उठा- प्रधानमंत्री अगर किसी जुनैद, किसी अखलाक, किसी अलीमुद्दीन के परिवार को एक बार गले लगा लेते तो क्या पता, कुछ बदल जाता.
आपका
अनाम
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