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पहली बार- बड़े लेखक का बड़ा वाला साक्षात्कार आपके लिए

'ईमानदार समीक्षा' तो आपने पढ़ी ही होगी। अब वक्त है 'बड़े लेखक' का साक्षात्कार पढ़ने का। लेखक बहुत बड़े हैं। धैर्य से पढ़ना। लेखक बिरादरी की बात है।  तीन-चार पुरस्कार झटक चुके हैं। राजनीतिज्ञों के बीच ठीक-ठाक धाक है। सोशल मीडिया पर चेलो-चपाटों की भरमार। संपादकों से ठसक वाली सेटिंग। महिला लेखिकाओं के बीच लोकप्रियता चरम पर। विश्वविद्यालयों में क्षेत्र और जात वाला तार जुड़ा हुआ है। कई संगठनों का समर्थन अलग से। अकादमी से लेकर समीक्षकों तक फुल पैठ। पूरी फौज है। बौद्धिक टिप्पणी के लिए अलग। गाली-गलौच के लिए छठे हुए। सेल्फी और शेयरिंग के लिए खोजे हुए। फिजिकल अटैक के लिए कभी-कभार वाले। साक्षात्कारकर्ता से टकरा गए थे किसी रोज लॉकडाउन से पहले। मार्च का महीना था। गले में गमछा और हाथ में किताबें लिए सरपंच बने फिर रहे थे। थोड़ी-सी नोंकझोक के बाद ऐसी दोस्ती हुई कि इंटरव्यू ही ले डाला। तो पढ़िए बड़े लेखक का बड़ा इंटरव्यू.............।

साक्षात्कारकर्ता- नमस्कार लेखक महोदय। आपका स्वागत है।
लेखक महोदय- बहुत-बहुत आभार आपका।

साक्षात्कारकर्ता- मेरा आपसे पहला सवाल है कि आप लिखते क्यों हैं।
लेखक महोदय- हा हा हा। देखिए आपका यह बेहद बेहूदा और अजीब सवाल है। आप किसी से पूछते हैं कि वो खाता क्यों है। हगता क्यों है। फिल्म बनाने वाले से कभी आपने पूछा है कि वो फिल्म क्यों बनाता है। कवि से कभी पूछा कविता लिखने में क्यों रात-रातभर सर खपाता है। अभिनेता से पूछा कि अभिनय क्यों करता है। मास्टर से पूछा पढ़ाता क्यों है। आपका सवाल यह होना चाहिए कि आपको लेखन की प्रेरणा कहां से मिली। कौन-सी वो चीज थी जिसने लेखक के प्रति आपका मोह पैदा किया और आप लेखक बन गए। और आप पूछ रहे हैं कि लिखते क्यों हैं? अरे भाई लेखक लिखे नहीं तो क्या खुरपी चलाए। मैं लिखता हूं कि मेरा पाठक मेरे विचार जान सकें। मेरी कहानियां और रचनात्मकता से प्रभावित हो सकें। मैं अपने लेखक के जरिए समाज को दिशा दिखाता हूं। राजनीति को राह दिखाता हूं। युवाओं को प्रेरणा देता हूं। और आप पूछ रहे हैं कि लिखते क्यों हैं। और...

साक्षात्कारकर्ता-  माफी चाहता हूं लेखक महोदय। मैं समझ गया कि आप कहना चाह रहे हैं कि छपे इसलिए लिखते हैं। अच्छा! मैं पूछना चाहता हूं कि आपका लिखा पढ़ता कौन है।
लेखक महोदय- आप जो लोगों का इंटरव्यू लेते हैं वो कौन पढ़ता है.. बताइए। अरे आपको साहित्य की कुछ समझ है कि नहीं। पहले पूछते हैं कि लिखते क्यों हैं। फिर कहते हैं कि छपने के लिए लिखते हैं आप। अब पूछ रहे हैं कि मेरा लिखा पढ़ता कौन है। अरे! मेरा अपना पाठक वर्ग है। हर लेखक का एक पाठक वर्ग होता है। मेरे पाठक मुझे पढ़ते हैं। देश ही नहीं दुनियाभर में मेरा पाठक वर्ग है। और आप पूछ रहे हैं कि पढ़ता कौन है। मेरी भूल थी जो मैंने आप जैसे अहमक को साक्षात्कार के लिए हां कर दी।

साक्षात्कारकर्ता- माफी चाहता हूं लेखक महोदय। शायद आप कहना चाह रहे हैं कि आप पढ़ाने के लिए नहीं लिखते। प्रसिद्धि के लिए लिखते हैं।
लेखक महोदय- (माथा पकड़ते हुए)। अरे यार...मैं प्रसिद्धि के लिए भी लिखता हूं। पढ़ाने के लिए.. और बिकने के लिए भी। और हां पुरस्कार के लिए भी। अब आप अगल सवाल पूछो और साहित्यिक सवाल पूछिए...कृपया।


साक्षात्कारकर्ता- माफी लेखक महोदय।  आप पढ़ाने के लिए लिखते हैं। और आपका लिखा वो ही पढ़ता है जिसका लिखा आप पढ़ते हैं। बाकी वाही वाही....
लेखक महोदय- आपको पता भी है कि साहित्य क्या चीज होती है। लेखक क्या चीज होता है। रचनात्मकता क्या होती है। मर जाएगा एक लेखक अगर नहीं लिखेगा तो। और हां...उसकी तारीफ करने वाला नहीं होगा फिर भी मर जाएगा उपेक्षा के।  आपके सवाल क्या हैं ये। अरे... आप मेरी रचनाओं पर बात करो। मेरी कृतियों और चरित्रों पर बात करो। मेरी शैली पर...क्या उल्टा-सीधा पूछ रहो हो। हटाओ ये ताम झाम...मुझे नहीं देना इंटरव्यू। उठते हुए....

साक्षात्कारकर्ता-  लेखक महोदय। बाहर निकलते हुए।  क्या हुआ। 

लेखक मोहदय-  देखिए। एक ही जात बिरादरी और क्षेत्र के होने के नाते हमने तुमको इंटरव्यू दिया। दोस्ती हुई और तुम मेरी ही इज्जत उतारने पर लगे हुए हो। क्या उल्टा-सीधा पूछ रहो हो। 
साक्षात्कारकर्ता- हमने तो पहले ही कहा था कि ये साहित्य वाहित्य जमता नहीं।आपको ही इंटरव्यू करवाना था..। अब कोई किताब कभी पढ़ी होगी तभी तो पूछेंगे। हमको क्या पता तु्म्हारा पात्र शीरी है या फरहाद। चार ठो किताबें दे दिए थे आप। अब इतना मोटका किताब कौन पढ़ता है भाई। ऊपर से कहानी पर इतना दिमाग खर्च करो, समझ ही नहीं आया प्रेम चल रहा है या नौटकीं....। 


अच्छा बुरा मत मानिए। ऊपर वाला सारा सेट हो जाएगा। 

नमस्कार। हमारे वक्त के सबसे स्थापित और बेस्ट सेलर लेखक चुन्नू महाराज हमारे साथ हैं। एक नहीं बल्कि अनेक विधाओं के महारथी चुन्नू महाराज की झोली में साहित्य अकादमी से लेकर गली-मोहल्ले की जितनी भी पुरस्कार बांटू अकादमियां हैं सबकी कृपा बरस चुकी है। नए लेखकों के भीष्म पितामह चुन्नू महाराज की नई चलन वाली हिंदी पर काफी मजबूत पकड़ है। उनके संघर्ष की कहानी ऐसी है कि किसी भी नए लेखक को झूठी लगती है पर उसकी गर्दन दाएं-बाएं नहीं हिल पाती क्योंकि भविष्य का सवाल है। आइए जानते हैं चुन्नी महाराज का संघर्ष...

सवाल- आपको लेखक की प्रेरणा कहां से मिली।

जवाब- देखिए। बचपन से ही मैंने मुंशी प्रेमचंद से लेकर राजकमल चौधरी, लेव तोलस्तोय से लेकर मैक्सिम गोर्की और फ्योदोर दोस्तोवस्की तक को जमकर पढ़ा। हमारे घर में साहित्यक मौहाल था। हंस से लेकर हंसी तक साहित्यिक की सारी बड़ी पत्रिकाएं घर में आती थी। बचपन से ही कहानी लिखने का शौक था। दिमाग में कहानी के सिवाय कुछ नहीं चलता था। दोस्तों को खूब कहानियां और किस्से सुनाता। हिंदी में ये जो बड़ी तादाद में कथेतर साहित्य लिखा जा रहा है मैं तो बचपन से ही इसमें मास्टर था। कहानियां और उपन्यास पढ़ते-पढ़ते अचानक एक दिन लगा मुझे लेखक बनना है। कितना सम्मान मिलता है समाज में। वाह। झोला। चश्मा और दाड़ी। बस जी बन गए लेखक।  

सवाल: हिंदी साहित्य लिखने वाला लेखक का घर कैसे चलता है। उल्टा पैसा खर्च कर किताब छपवानी पड़ती है। आपने कितने खर्च किए।

जवाब- देखिए। पहली किताब के लिए दस हजार दिए थे। दूसरी वाली के लिए 15 हजार और तीसरी वाली के लिए 20 हजार खर्च किए। अच्छा सुनिए- ये जो मुंह से सच निकल गया न इसको कट कर देना। बात ऐसी है कि मैं तो सोशल मीडिया पर लिखता था। सोशल मीडिया ने ही मुझे लेखक बनाया है। पहले प्रकाशकों के बहुत चक्कर मारे लेकिन किसी ने भाव तक नहीं दिया जब सोशल मीडिया से मैं लोकप्रिय हो गया तो प्रकाशकों की लाइन लग गई। 

फिर अल्ट सीधे सवाल पर आ गए। मेरी किताबों पर पूछे। किताबों पर... 

ठाकुर साहब ऐसा करो ये साहित्य-वाहित्य अपनी बस की नहीं है। अपना एक लौंडा है जो किताबों पर लेटा रहता है। इस इंटरव्यू को उससे ही करवाएंगे। और इसके बाद आपको अगला पुरस्कार पक्का....।


ललित फुलारा

टिप्पणियाँ

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  2. बहुत ई मज़ेदार पर सत्य। लेखक के लिए लिखने का आनंद ज्यादा आवश्यक है वरना उपेक्षाओं से उबरने की कोशिशें छीछालेदर कर देती हैं।

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