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मिलिए, उत्तराखंड के उस शख्स से जिनका पीएम मोदी ने 'मन की बात' में लिया नाम

जगदीश कुन्याल
(जगदीश कुन्याल)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को 'मन की बात' कार्यक्रम में उत्तराखंड के बागेश्वर निवासी जगदीश कुन्याल के पर्यावरण संरक्षण और जल संकट से निजात दिलाने वाले कार्यों की सराहना की। पीएम मोदी ने कहा कि उनका यह कार्य बहुत कुछ सीखाता है। उनका गांव और आसपास का क्षेत्र पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए एक प्राकृतिक जल स्त्रोत पर निर्भर था। जो काफी साल पहले सूख गया था। जिसकी वजह से पूरे इलाके में पानी का संकट गहरा गया। जगदीश ने इस संकट का हल वृक्षारोपण के जरिए करने की ठानी। उन्होंने गांव के लोगों के साथ मिलकर हजारों की संख्या में पेड़ लगाए और सूख चुका गधेरा फिर से पानी से भर गया।


कौन हैं जगदीश कुन्याल

दरअसल, जगदीश कुन्याल पर्यावरण प्रेमी हैं और उन्होंने अपनी निजी प्रयास से इलाके में हजारों की संख्या में वृक्षारोपण किया जिसकी वजह से सूख चुके पानी के गधेरे में जल धारा फिर से प्रवाहित हुई। वह गरुड़ विकासखंड के सिरकोट गांव के रहने वाले हैं। पूर्ण ज्येष्ठ प्रमुख भी रहे हैं। उन्होंने अपने इस भगीरथ प्रयास की बदौलत न सिर्फ गांव वालों के लिए मिशाल पेश की है, बल्कि सूबे के सभी पर्यावरण प्रेमियों और लोगों को प्रकृति प्रेम व पर्यावरण संरक्षण की सीख दी है।

जगदीश करीब चार दशक से क्षेत्र में वृक्षारोपण का कार्य कर रहे हैं। उन्होंने अपनी और ग्राम सभा की जमीन पर बांज, देवदार, शीशम, बुरांश, उतीस व अन्य प्रजातियों के पेड़ लगाकर गांव के ही सूख चुके गधेरे को फिर से पानी से भर दिया है। पर्यावरण प्रेमी होने के साथ ही वह सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं।

अपनी ज़मीन पर खरीद कर लगाए पेड़, पीएम की तारीख के लिए शब्द नहीं...

जगदीश कहते हैं, मैंने कभी नहीं सोचा था कि देश के प्रधानमंत्री द्वारा मेरे पर्यावरण संरक्षण के कार्यों की सराहना की जाएगी। मैं सालों से निस्वार्थ भाव से बस अपना प्रकृति प्रेम निभा रहा हूं। मन में कभी भी प्रचार का कोई भाव नहीं रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' कार्यक्रम में मेरे प्रयासों की सराहा की, जिसके लिए मेरे पास शब्द नहीं है। पूरे गांव में खुशी की लहर है। लोग फोन कर बधाई दे रहे हैं।  वह बताते हैं कि उन्होंने सबसे ज्यादा करीब दस-बारह हजार पेड़ अपनी ही जमीन पर लगाए हैं। इसके बाद ग्रामसभा की जमीन पर भी पेड़ लगाने की शुरुआत की।



गौरा देवी से मिली पेड़ लगाने की प्रेरणा
वह बताते हैं, मुझे चिपको आंदोलन की जननी गौरा देवी से पेड़ लगाने की प्रेरणा मिली। जब मैंने पहली बार उनके बारे में सुना, तो मुझे लगा कि पर्यावरण बचाने के लिए वृक्षारोपण जरूरी है। यह वह दौर था जब गांव में सड़क नहीं थी और कई किलोमीटर पैदल चलकर पेड़ लाने पड़ते थे। पर्यावरण संरक्षण की चिंता पहाड़ की मिट्टी में ही है।  वह कहते हैं, मैंने अपनी जमीन पर हजार से ज्यादा देवदार के वृक्ष लगाए हैं। पहाड़ में चिड़ को पानी के लिए खतरा बताते हुए जगदीश कहते हैं, चीड़ की वजह से ही पानी के प्राकृतिक स्त्रोत सूख जाते हैं। चीड़ बिल्कुल नहीं होना चाहिए। इसकी जगह बुरांश और बाज के वृक्षों को ज्यादा से ज्यादा तादाद में लगाया जाना चाहिए।

वह बताते हैं कि शुरुआत में किसी ने भी वृक्षारोपण की इस पहल में उनका साथ नहीं दिया। मैं पेड़ लगाता था और लोग उसे उखाड़ देते थे।



वन विभाग और सरकार से नहीं मिली सहायता
जगदीश कहते हैं कि वृक्षारोपण के इस कार्य में उन्हें न ही वन विभाग और न ही सरकार की कोई सहायता मिली। यह उनका निजी प्रयास है। अपने लोगों व अपने गांव के लिए है। धीरे-धीरे इस प्रयास में स्थानीय ग्रामीणों ने भी उनका साथ दिया और कई लोग वृक्षारोपण के महत्व को समझे। 



पिता की तारीफ से बेटी खुश, कहा- पेड़ लगाना जिंदगी का हिस्सा

उनकी बेटी इंद्रा कुन्याल गुरुग्राम में एक निजी कंपनी में काम करती हैं। पिता के प्रयासों की सराहना से बेहद खुश हैं। उनका कहना है कि देश के पीएम ने पहली बार बागेश्वर से किसी के कार्य को राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह से सराहा है। यह गर्व से भर देने वाली बात है। इंद्रा उन दिनों को याद करती हैं जब वह पिता के साथ खुद भी वृक्षारोपण के लिए जाया करती हैं।  वह कहती हैं, पिता के साथ मैंने अपनी खेती और बंजर जमीन पर पेड़ लगाए हैं।  

पेड़ लगाना पहाड़ की जीवनशैली का हिस्सा है। जैसे खेती, गाय, गोबर का कार्य है, उसी तरह से पेड़ लगाना भी जिंदगी का अहम हिस्सा है। इससे जमीन को भी फायदा होता है और लोगों को भी।

ललित फुलारा

टिप्पणियाँ

  1. "उत्तराखंड के गर्व" कुन्याय जी के नि:स्वार्थ कार्य की सराहना कर मोदी जी ने कुन्याय जी और उत्तराखंड को गौरवान्वित किया है,

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  2. बढ़िया सामग्री दी आपने !
    हमारे लिए गर्व की बात है।
    आभार

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